Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
सन्त शब्द : रूढ़, प्रचलित या संकुचित अर्थ
सन्त शब्द आजकल अपनी पूर्ववर्ती उदात्त अर्थ स्थिति से विच्छिन्न होकर ऐसे ज्ञानी निर्गुण सन्तों के अर्थ को द्योतित करता है; जो नीची जातियों में उत्पन्न हुए हैं, ब्राह्मण, वेद और सगुण ब्रह्म में आस्था नहीं रखते हैं, जाति-पाँति के बन्धनों को अस्वीकार करते हैं, आदि सन्त कबीर या कबीर जैसे किसी अन्य सन्त को अपना गुरु मानते हैं तथा उनके मत या सम्प्रदाय, रीति-नीति, आचार-विचार, साधना एवं साधना के लक्ष्यों की सीधी परम्परा से सम्बद्ध हैं।
उपर्युक्त रूढ़ और प्रचलित अर्थ की पुष्टि गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में वर्णित सन्तों के मौलिक अश्रुतपूर्व एवं साम्प्रदायिक से लगने वाले उन लक्षणों से भी होती है जिनका उल्लेख तुलसीदास ने उत्तरकाण्ड के "कलि महिमा” 1 वाले प्रसंग में की है।
___ गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार ये तथाकथित सन्त तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल, कलवार आदि अधमवर्गों में उत्पन्न होने वाले थे। जो पुराण और वेद की प्रामाणिकत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। ब्राह्मण के प्रति जिनमें कोई श्रद्धा नहीं थी, जो अनेक जप-तप और व्रतों का अनुष्ठान करते थे। व्यासगद्दी पर बैठकर धर्मोपदेश देते थे, ब्राह्मणों से विवाद करते थे और स्वयं को ब्राह्मण कहते थे। उन पर अपने ज्ञान का रोब डालकर उन्हें ज्ञान का उपदेश देते थे, जनेऊ पहनकर कुदान लेते थे और ब्राह्मणों से अपनी पूजा करवाते थे। शिव 1. रामचरितमानस (गीताप्रेस गोरखपुरु उचरकाण्ड दोहा 97-110 तक 2. जे बस्नाधम तेलि कुम्हारु । स्वपच किरात कोल कलवारा ।। वही दोहा 100 चौपाई 3 3. नहिं मान पुरान न बेदहिं जो । हरि सेवक सन्त सही कलि सो ॥
वहीं दोहा 101 चौपाई 4 4. सुद्र करहिं जप तप व्रत जाना। बैठि बरासन कहहिं पुराना ।
वही दोहा 100 चौपाई 5 5. नादहि सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्हते कछु घाटी।
जानई ब्रह्म सो विप्रवर ऑखि देखावहि डांटि॥ वही दोहा 99 ख 6. सूट द्विजन्ह उपदेसाहिं ग्याना । मेलि जनेक लेहि कुदाना ।।
मानस वही दोहा 99 चौपाई 1 7. ते विप्रन्ह सन आपु पुजावहि । उभयलोक निह हाथ नसावहिं ॥
वहीं दोहा 100 चौपाई 4