Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गावं ६२ ]
एवं जात्र० ।
३५. सव्बउदीरणोसव्व उदीरणा० श्रोषेण सयाओ पयडीओ उदीरेंतस्स एवं जाव० ।
उत्तरपयडिउदीरणाए अगियोगारपरूवणा
१६
दुविहो णि० - ओघे० आदेसे० । सव्वुदीरणा । तदूणं णोसव्युदीर० ।
६३६ मा कराकर
नगर सिहे महाराज्योषेण सब्बुकस्सियाओ पडीओ उदीरयंतस्स उक्क उदीरणा । तद्रणमरणुक० उदीरणा । एवं० जाव० !
६ ३७. जह० उदी० - अज० उदीरणारसु० दुबिहो णि० – ओघेण आदेसे० । श्रोण एवं पर्याडमुदीरयंतस्स जहरणउदीरणा । तदो उवरिमजह० उदीर० । एवं मणुसतिए । देसेण णेरइय० छप्पयडीओ उदीरेमाण० जह० उदी० । तदो उदरि श्रजह० उदीर० । एवं सच्चरइय० सच्चदेवा० । सव्यतिरिक्खेसु पंचपयडीओ उदीरेमाणस जहणउदी० । तदो उयरिमजह० उदीर० । णवरि पंचि ० तिरिक्खअपज ० - मसाप ० अटूपयडीओ उदीरेमाण० जह० उदीर० । तदो उवरि
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प्रकार अनाहारक मार्गातक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – कुछ अपवादों को छोड़कर साधारण नियम यह है कि जब जिस प्रकृतिका उदय होता है तब उसकी उदीरणा भी होती हैं । इस नियमको ध्यान में रखकर सर्वत्र समुत्कीनाका विचार कर लेना चाहिए ।
१ ३५. सर्व और नोसर्व उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रघ और आदेश । श्रधसे सत्र प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके सर्व उदीरणा होती है तथा उससे कमकी उदीरण करनेवाले जीवके नीसर्व उदीरणा होती हैं। इसीप्रकार अनाहारक मर्गरणा तक जानना चाहिए।
६३६. उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोष और आदेश । श्रवसे सबसे उत्कृष्ट प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके उत्कृष्ट उदीरणा होती है और उससे कम प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जांब के अनुत्कृष्ट उदीरणा होती हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गरणा तक जानना चाहिए |
३३७. जघन्य उदीरणा और अजघन्य उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रघसे एक प्रकृतिका उदीरणा करनेवाले जीवके जघन्य उदीरणा होती है। तथा इससे अधिक प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके अजघन्य उदीरणा होती है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें छह प्रकृतियोंकी उदीरण करनेवाले जीवके जघन्य उदीरणा होती है और उनसे अधिक प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके अजघन्य उदीरणा होती है । इसीप्रकार सब नारकी और सब देवोंमें जानना चाहिए। सब तिर्यश्र्चों में पाँच प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके जघन्य उदीरणा होती है और इनसे अधिक प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके अजघन्य उदीरणा होती हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि पश्चेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्त और मनुष्य अपर्यातकों में आठ प्रकृ तियोंकी उदीरणा करनेवाले जीवके जघन्य उदीरणा होती है और इनसे अधिक प्रकृतियोंकी