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सकळोनुतपूज्यपादमुनिपं तो पेल्द कल्याणकारकदि देहद दोषमं विततवाचादोषमं शब्दसाधकजैनेंद्रदिनी जगज्जनद मिथ्यादोषमं तत्वबांधक
तत्वार्थद वृत्तिायेंद कळेदं कारुण्यदुग्धार्णवं ॥ उपर्युक्त शुभचंद्राचार्य के वचनोंका यह ठीक समर्थक है अर्थात् सर्वजनपूज्यश्री पूज्यपाद ने अपने कल्याणकारक नामक वैद्यक ग्रंथ के द्वारा प्राणियोंके देहज दोषोंको, शन्दसाधक जैनेंद्र व्याकरण से वचनके दोषोंको और तत्वार्थवृत्ति की रचना से मानसिक दोष [ मिथ्यात्व ] को दूर किया है । इससे भी यह स्पष्ट होता कि पूज्यपादने कल्याण कारक नामक वैद्यक ग्रंथ की रचना की है । इसके अलावा कुछ विद्वानोंका जो यह कहना है कि सर्वार्थसिद्धिकार पूज्यपाद व वैद्यकग्रंथ के कर्ता पूज्यपाद अलग २ हैं वह गलत मालुम होता है। कारण इससे स्पष्ट होता है कि पूज्यपादने ही भिन्न २ विषयोंके ग्रंथों का निर्माण किया था। कुछ विद्वान् वैद्यक-ग्रंथकर्ता पूज्यपाद को १३ वें शतमानमें डालकर उनमें भिन्नता सिद्ध करना चाहते हैं। परंतु उपर्युक्त प्रमाणोंसे वे दोनों बातें सिद्ध नहीं होती । प्रत्युत् यह स्पष्ट होता है कि पूज्यपाद ने ही व्याकरण सिद्धांत व वैद्यक ग्रंथकी रचना की है। जब उग्रादित्याचार्यने भी पूज्यपादके वैद्यक-ग्रंथका उल्लेख किया है और जब कि उग्रादित्याचार्य जिनसेन के समकालीन थे ( जो आगे सिद्ध किया जायगा) तो फिर यह बहुत अधिक स्पष्ट हो चुका कि पूज्यपाद का पंधक ग्रंथ बहुत पहिले से होना चाहिए। वे और कोई नहीं है । अपितु सर्वार्थसिद्धिके कर्ता पूज्यपाद ही हैं । उग्रादित्याचार्य के कल्याणकारक से तो यह भी ज्ञात होता है कि पूज्यपाद ने कल्याणकारक के अलावा शालाक्य तंत्र ( शल्यतंत्र ) नामक ग्रंथका भी निर्माण किया था,जिसमें आपरेशन आदिका विधान बतलाया गया है । पूज्यपाद स्वामीका समग्र वैद्यक ग्रंथ तो उपलब्ध नहीं होता । तथापि यह निस्संदेह कह सकते हैं कि उनकी वैद्यकीय रचना भी सिद्धांत व व्याकरण के समान बहुत ही महत्वपूर्ण होगी । उन्होंने अपने ग्रंथमें जैनमत प्रक्रियाके शब्दोका ही प्रयोग किया है। इसीसे उनके. ग्रंथकी महत्ता मालुम हो सकती है कि उन्होंने अपने ग्रंथ में कुमारी भुंगामलक तैलके क्रमको अनुष्टप् श्लोकके ४६ चरणोंसे प्रतिपादन किया है । गंधक रसायन के क्रम को ३७ चरणोंमें, महाविषमुष्टितैलकी विधिको ४८ चरणोंमें, और भुवनेश्वरी चूर्ण के विधानको ३० चरणोमें प्रतिपादन किया है । मरिचकादि प्रक्रिया जो उनके ग्रंथमें कही गई है वह निम्नलिखित प्रकार है।
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