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यापनीय साहित्य : १३. अध्ययन बराबर चल रहा था । अतः इससे यही सिद्ध होता है कि मूलाचार की रचना कुन्दकुन्द की दिगम्बर परम्परा में न होकर यापनीयों की अचेल परम्परा में हुई है।
स्वयं मूलाचार' के पांचवें पंचाचार नामक अधिकार की ७९वीं गाथा में और ३८७२ न० गाथा में आचारकल्प, जीतकल्प, आवश्यकनियुक्ति, आराधना, मरणविभक्ति, पच्चक्खाण, आवश्यक, धर्मकथा (ज्ञाताधर्मकथा) आदि ग्रन्थों के अध्ययन के स्पष्ट निर्देश हैं । उक्त गाथाओं में निम्न ग्रन्थों का निर्देश प्राप्त होता है-१. आराधना, २. नियुक्ति, ३. मरणविभक्ति, ४. संग्रह (पंचसंग्रह), ५. स्तुति (देविन्दत्थुई), ६. प्रत्याख्यान, ७. आवश्यक और ८. धर्मकथा ।
सर्वप्रथम यह विचारणीय है कि इन ग्रन्थों में कौन-कौन ग्रन्थ श्वेताम्बर परम्परा में मान्य एवं उपलब्ध हैं और कौन-कौन दिगम्बर ‘परम्परा में मान्य एवं उपलब्ध हैं । इन ग्रन्थों में सर्वप्रथम आराधना का नाम है । आराधना के नाम से सुपरिचित ग्रन्थ शिवार्य का भगवतीआराधना या मूलाराधना है। यह सुस्पष्ट है कि भगवती आराधना मूलतः दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ न होकर यापनीय संघ का ग्रन्थ है। मूलाचार में जिस आराधना का निर्देश किया गया है, वह सम्भवतः भगवतीआराधना हो, क्योंकि मूलाचार भी उसी यापनीय परम्परा का ग्रन्थ प्रतीत होता है और मुलाचार के रचनाकार ने सर्वप्रथम उसी ग्रन्थ का नामोल्लेख किया है। दिगम्बर परम्परा में आराधना नाम का कोई ग्रन्थ नहीं है। यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा में मरणविभक्ति नामका जो ग्रन्थ है उसकी रचना भी जिन आठ प्राचीन श्रुत ग्रन्थों के आधार पर मानी जाती है उनमें मरणविभक्ति, मरणविशोधि, मरणसमाधि, संलेखनाश्रुत, भत्तपरिज्ञा, आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान और आराधना हैं। प्रस्तुत गाथा में मरणविभक्ति, प्रत्याख्यान और आराधना ऐसे तीन स्वतंत्र ग्रन्थों के उल्लेख हैं। यह भी सम्भव है कि मूलाचार का आराधना से तात्पर्य इसी प्राचीन 'आराधना' से रहा होगा। यह 'आराधना' भगवतीआराधना की रचना का भी आधार रही है। यदि हम आराधना का तात्पर्य भगवतीआराधना लेते हैं तो हमें इतना निश्चित रूप से स्वीकार
१. आराहणा निज्जुति मरणविभत्तीयं संगहत्थुदिओ ।
पच्चखाणावासय धम्मकहाओ य एरिसओ ॥-५/७९ २. आयार जीदकप गुण दीवणा"" ।-५/३८७
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