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यापनीय साहित्य : १७१
१. हरिवंश पुराणकार हरिषेण और जिनसेन पुन्नाटसंघी हैं । यह हम पूर्व में ही बता चुके हैं कि पुन्नाटसंघ यापनोय पुन्नागवृक्षमूलगण का ही परवर्ती रूप है । वह यापनीय परंपरा से ही विकसित हुआ है । अतः इस संघ के आचार्यों को अनेक यापनीय मान्यताएँ स्वीकृत भी रही हैं । जैसा कि हम देख चुके हैं कि हरिषेण ने अपने बृहत्कथाकोश में स्पष्ट रूप से स्त्रीमुक्ति और गृहस्थमुक्ति का समर्थन किया है, इससे उनका यापनीय होना स्वयंसिद्ध है । डा० श्रीमती कुसुम पटोरिया लिखती हैं कि - कथा - कोशकार हरिषेण ने स्त्रीमुक्ति और गृहस्थमुक्ति का स्पष्ट उल्लेख किया है, अत: उन्हें यापनीय होना चाहिए। हरिवंशपुराणकार भी उसी पुन्नाट - संघ के हैं । अतः उन्हें भी यापनोय ही होना चाहिए । १
२. श्वेताम्बरों और यापनीयों में आचारांग, कल्पसूत्र आदि के आगमिक उल्लेखों के आधार पर महावीर के यशोदा से विवाह का कथानक प्रचलित रहा है । २ हरिवंशपुराण में भी हरिषेण ने महावीर के यशोदा से विवाह प्रसंग को उठाया है । इससे भी उनका यापनीय होना सिद्ध होता है ।
३. श्वेताम्बर परंपरा में मान्य आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठवें अध्ययन के सातवें उद्देशक में वृद्ध या ग्लान मुनियों के परस्पर आहारादि से सेवा सम्बन्धी निम्न चार विकल्पों का उल्लेख है -
(अ) मैं अन्य मुनियों को आहारादि लाकर दूँगा और उनके द्वारा लाये गये आहारादि को स्वीकार भी करूँगा ।
(ब) मैं अन्य मुनियों को आहारादि लाकर दूंगा, किन्तु उनके द्वारा लाया गया आहारादि स्वीकार नहीं करूँगा ।
(स) मैं अन्य मुनियों द्वारा आहारादि से की जाने वाली सेवा को स्वीकार तो करूँगा, किन्तु स्वयं उनकी सेवा नहीं करूँगा ।
(द) मैं आहारादि से न तो अन्य मुनियों की सेवा करूंगा और न उनके द्वारा की जाने वाली सेवा को स्वीकार कहाँगा |
१. यापनीय और उनका साहित्य, पृ० १४९ ।
२. आचारांग, द्वितीयश्रुतस्कन्ध अध्ययन ।
३. यशोदयां सुतया यशोदया पवित्रया वीर विवाह मंगलम् ।
४. आचारांग, १।८।७।२२२. (सं० घेवरचंद जी बांठिया, बीकानेर ) ।
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- हरिवंश ६६।८
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