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निग्रन्थ संघ में उपकरणों की विकास यात्रा : ४८७ यापनीयों और श्वेताम्बरों के अलग-अलग होने के पूर्व की है और ईस्वी पूर्व उत्तर भारत में निग्रन्थ संघ की क्या स्थिति थी, उसकी सूचक है । इससे भगवती आराधना में वृद्ध या रोगी साधु को आहारादि लाकर देने की जो बात है उसको भी पुष्टि हो जाती है।
पंचमहाव्रत और उनकी भावनाएँ-पाँच महावतों की पच्चीस भावनाओं का उल्लेख श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय तीनों पम्रपराओं में पाया जाता है। श्वेताम्बर परम्परा में आचारांग के द्वितीय श्रुत स्कन्ध, समवायांग, आवश्यकचूणि एवं आचारांगचूर्णि में अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाओं के रूप में ईर्या-समिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, आदानभाण्ड निक्षेपण समिति, और आलोकित पान-भोजन ऐसी पाँच भावनाओं का उल्लेख हुआ है ।' इन्हीं पाँच भावनाओं का उल्लेख दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थसूत्र के सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ तथा कुन्दकुन्द के चारित्र-पाहुड में भी हआ है ।२ श्वेताम्बर परम्परा के उपलब्ध प्रश्नव्याकरणसूत्र, जो कि परवर्ती है और लगभग छठी सदी की रचना है, में आलोकित पान-भोजन का उल्लेख नहीं है, उसके स्थान पर एषणा-समिति का उल्लेख है । इस सन्दर्भ में यापनीय परम्परा को स्थिति भिन्न है। इसके ग्रन्थ मूलाचार एवं भगवती आराधना में आचारांग आदि श्वेताम्बर परम्परा के ग्रंथों में उल्लिखित अथवा कुन्दकुन्द और तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टोका में उल्लिखित वचनगुप्ति का अभाव है और उसके स्थान पर प्रश्नव्याकरण की एषणा समिति को मान्य किया गया है । यहाँ मूलाचार और भगवती आराधना, तत्त्वार्थभाष्य का अनुसरण करते प्रतीत होते हैं। यह बात हम पूर्व में भो कह चुके हैं कि अनेक सन्दर्भो में यापनीय आचार्य तत्त्वार्थभाष्य का अनुसरण करते हैं। आश्चर्य यही है कि जहाँ कुन्दकुन्द इस प्रसंग में आचारांग, समवायांग आदि श्वेताम्बर आगमों का अनुसरण कर रहे हैं वहाँ यापनीय परवर्ती आगम प्रश्नव्याकरण एवं तत्त्वार्थभाष्य का
१. (i) आचारांग २०१५
(i) आवश्यकचूर्णि-प्रतिक्रमण अध्ययन १
(iii) आचारांगचूर्णि-मू० पा० टि० पृ० २७९ २. (i) तत्त्वार्थसूत्र-७१३
(i) चरित्तपाहुड ३१ ३. (i) मूलाचार ५।१४०
(ii) भगवती आराधना १२००
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