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यापनीय साहित्य : २१७ परम्परा की मान्यतानुरूप है ।' जबकि यापनीय रविषेण और दिगम्बर परम्परा के अन्य आचार्य देवलोकों की संख्या १६ मानते हैं अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का प्रमाण माना जा सकता है।
११-पउमचरियं में सम्यक्दर्शन को पारिभाषित करते हुए यह कहा गया है कि जो नव पदार्थों को जानता है वह सम्यग्दृष्टि है।२ पउमचरियं में कहीं भी ७ तत्त्वों का उल्लेख नहीं हुआ है। पं० फूलचन्द जो के अनुसार यह साक्ष्य ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने के पक्ष में जाता है। किन्तु मेरी दष्टि में नव पदार्थों का उल्लेख दिगम्बर परम्परा में भी पाया जाता है अतः इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य तो नहीं कहा जा सकता। दोनों ही परम्परा में प्राचीन काल में नव पदार्थ ही माने जाते थे, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् दोनों में सात तत्त्वों की मान्यता भी प्रविष्ट हो गई। च कि श्वेताम्बर प्राचीन स्तर के आगमों का अनुसरण करते थे अतः उनमें ९ तत्त्वों की मान्यता की प्रधानता बनी रही। जब कि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता स्थापित हो गई।
१२-पउमचरियं में उसके श्वेताम्बर होने के सन्दर्भ में जो सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध है वह यह कि उसमें कैकयी को मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है, इस प्रकार पउमचरियं स्त्री मुक्ति का समर्थक माना जा सकता हैं । यह तथ्य दिगम्बर परम्परा के विरोध में जाता है। किन्त हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यापनोय भी स्त्रीमुक्ति तो स्वीकार करते थे अतः इस दृष्टि से यह ग्रन्थ श्वेताम्बर और यापनीय दोनों परम्पराओं से सम्बद्ध माना जा सकता है ।
१३-इसी प्रकार पउमचरियं में मुनि को आशीर्वाद के रूप में धर्मलाभ कहते हुए दिखाया गया है, जबकि दिगम्बर परम्परा में मुनि आशिर्वचन के रूप में धर्मवृद्धि कहता हैं, किन्तु हमें यह स्मरण रखना
१. पउमचरियं, ७५/३५-३६ और १०२/४२-५४ । २. पउमचरियं, १०२/१८१ ।। ३. अनेकान्त वर्ष ५, किरण १-२ तत्वार्थ सूत्र का अन्तःपरीक्षण, पं० फूलचन्द,
जी, पृ० ५१। ४. सिद्धिपयं उत्तम पत्ता-पउमचरियं ८३/१२ । ५. देखें, पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २१ ।
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