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२२६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
प्राचीन स्तुतियों के कर्ता समन्तभद्र की हो कृति है । दूसरे यह कि यह कारिका दोनों ग्रन्थों में अपने योग्य स्थान पर है अतः इसे सिद्धसेन से समन्तभद्र ने लिया है या समन्तभद्र से सिद्धसेन ने लिया है यह कह पाना कठिन है । तीसरे समन्तभद्र भी लगभग ५ वीं शती के आचार्य है अतः न्यायावतार को सिद्धसेन की कृति मानने में बाधा नहीं हैं ।
पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार सन्मतिसूत्र के कर्ता सिद्धसेन को दिग म्बर परम्परा का आचार्य सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं तथापि मुख्तार जी उन्हें दिगम्बर परम्परा का आचार्य होने के संबंध में कोई भी आधारभूत प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाये हैं । उनके तर्क मुख्यतः दो बातों पर स्थित हैं - प्रथमतः सिद्धसेन के ग्रन्थों से यह फलित नहीं होता कि वे स्त्रीमुक्ति, केवलीभुक्ति और सवस्त्रमुक्ति आदि के समर्थक थे। दूसरे यह कि सिद्धसेन अथवा उनके ग्रन्थ सन्मति सूत्र का उल्लेख जिनसेन, हरिषेण, वीरषेण आदि दिगम्बर आचार्यों ने किया है-इस आधार पर वे उनके दिगम्बर परम्परा का होने की संभावना व्यक्त करते हैं । यदि आदरणीय मुख्तार जी उनके ग्रन्थों में स्त्रीमुक्ति, केवलोभुक्ति या सवस्त्रमुक्ति का समर्थन नहीं होने के निषेधात्मक तर्क के आधार पर उन्हें दिगम्बर मानते हैं, तो फिर इसी प्रकार के निषेधात्मक तर्क के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उनके ग्रन्थों में स्त्रीमुक्ति, dharaक्ति और सवस्त्र मुक्ति का खण्डन नहीं हैं, अतः वे श्वेताम्बर पर - म्परा के आचार्य हैं ।
पुनः मुख्तार जी यह मान लेते हैं कि रविषेग और पुन्नाटसंघीय जिनसेन दिगम्बर परम्परा के हैं, यह भी उनकी भ्रांति है। रविषेण याप नीय परम्परा के हैं अतः उनके परदादा गुरु के साथ में सिद्धसेन दिवाकर का उल्लेख मानें तो भी वे यापनीय सिद्ध होगें दिगम्बर तो किसी भो स्थिति में सिद्ध नहीं होंगे । आदरणीय मुख्तारजी ने एक यह विचित्र तर्क दिया है कि श्वेताम्बर प्रबन्धों में सिद्धसेन के सन्मति सूत्र का उल्लेख नहीं है, इसलिए प्रबन्धों में उल्लेखित सिद्धसेन अन्य कोई सिद्धसेन हैं, वे सन्मतिसूत्र के कर्ता सिद्धसेन नहीं हैं । किन्तु मुख्तार जी ये कैसे भूल जाते हैं कि प्रबन्ध ग्रन्थों के लिखे जाने के पाँच सौ वर्ष पूर्व हरिभद्र के पंचवस्तु तथा जिनभद्र की निशोथचूर्णि में सन्मतिसूत्र और उसके कर्ता के रूप में सिद्धसेन के उल्लेख उपस्थित हैं । जब प्रबन्धों से प्राचीन श्वेता१. देखे - जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पं० जुगल किशोर मुख्तार, पृ० ५८०-५८२
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