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यापनीय संघ की विशिष्ट यान्यताएं : ४१५ कहा गया है इससे यह फलित होता है कि यापनीय परम्परा श्वेताम्बर “परम्परा की हो तरह उदार थो और स्त्रो मुक्ति के साथ-साथ अन्यतैर्थिक एवं गृहस्थों की मुक्ति की सम्भावना को स्वीकार करती थी।
केवली-भुक्ति का प्रश्न (अ) केवलो कवलाहार और आगमिक परम्परा : __ केवली के कवलाहार का प्रश्न भो यापनीय और दिगम्बर परम्परा के बीच विवाद का विषय रहा है। जहाँ एक ओर श्वेताम्बर और यापनीय परम्परायें केवली का कवलाहार स्वीकार करती हैं, वहाँ दिगम्बर परम्परा केवली के कवलाहार का निषेध करतो हैं । केवली के कवलाहार सम्बन्धी विवाद की यह चर्चा हमें ईस्वी सन् के छठवीं शती के पहले के किसी ग्रन्थ में नहीं मिलतो है । सामान्यतया दोनों ही परम्पराओं के मान्य ग्रन्थों में एकेन्द्रिय से लेकर सयोगो केवली तक सभी आहारक होते हैं, ऐसा उल्लेख उपलब्ध होता है। श्वेताम्बर परम्परा के भगवतोसूत्र में भगवान महावीर को केवलज्ञान के पश्चात् नित्य-भोजो कहा गया है।' इसके उल्लिखित एक अन्य प्रसंग में भगवतीसूत्र में भगवान के द्वारा भोजन ग्रहण करने का भी निर्देश है ।२ समवायांगसूत्र में तोथंकर के अतिशयों के प्रसंग में यह कहा गया है कि केवलो के आहार और निहार चक्षुओं से दिखाई नहीं देते। इसके अतिरिक्त आगमों में यह भी उल्लेख है ऋषभ आदि ने मुक्ति प्राप्त करने के पूर्व कितने दिनों का उपबास
१. "तेणं कालेणं तेणं समयेणं समणे भगवं महावीरे 'वियडभोई' या वि होत्या।
तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियट्टभोगियस्स सरीरं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिणं धन्न मंगल्लं सस्सिरीयं अणलंकियविभूसियं सिरीय अतीवअतीव उवसोभमाणे चिट्टइ।"
-भगवतीसूत्र, २/१ ( स्कन्दक तापस अधिकार ) २. तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विपुले रोगायके खिप्पामेव उवसंते, हट्टे जाए, अरोगे, बलियसरीरे ।
-भगवतीसूत्र, १५/१६३ ३. पच्छन्ने आहारनिहारे-अविस्से मंसचक्खुणा
-समवायाग, सू० ३४/१७५
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