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४३० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय आचार्यों ने उसका अनुसरण करते हुए केवली भुक्ति का सर्मथन किया। शाकटायन के पश्चात् किसी यापनीय आचार्य ने इस सम्बन्ध में कुछ लिखा हो, ऐसा ज्ञात नहीं होता है । ज्ञातव्य है लगभग १०वीं शती तक यह समस्या यापनीयों और दिगम्बरों के बीच विवाद का विषय रहीइसके पश्चात् यह समस्या श्वेताम्बरों और दिगम्बरों के बीच भी विवाद का मुख्य मुद्दा बन गयी और दोनों परम्पराओं में इसके खण्डन-मण्डन हेतु विपुल लेखन हुआ, जिसकी चर्चा प्रस्तुत प्रसंग में अपेक्षित नहीं है ।
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