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३८८ : जैनधर्मं का मापनीय सम्प्रदाय
वश्यकभाष्य के अनुसार बोटिक भिन्नमत और भिन्नलिङ्ग थे । अभयदेव, स्थानाङ्ग' की टीका में वेश और धर्म साधना की दृष्टि से चार प्रकार के पुरुषों की चर्चा करते हुए लिखते हैं, "बोटिकों में स्थित मुनि कारणवशात् साधु के वेश ( लिङ्ग ) का त्याग करते हैं किन्तु धर्म अर्थात् चरित्र का त्याग नहीं करते, जबकि निहव वेश वही रखते हैं किन्तु धर्म का त्याग कर देते हैं ।" दूसरे शब्दों में अभयदेव के अनुसार बोटिकों का बाह्यवेश तो श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप नहीं था, किन्तु उनमें मुनिभाव यथार्थ था । बोटिकों के प्रति यह उदार और सम्मानपूर्ण दृष्टि अभयदेव की अपनी विशिष्टता है । श्वेताम्बर परम्परा में बोटिक को भी निव माना गया है फिर भी अभयदेव जहाँ अन्य निह्नवों को धर्म या चारित्रच्युत मानते हैं, वहाँ बोटिकों को चारित्रच्युत नहीं मानते हैं । इस प्रकार वे अन्य निह्नवों की अपेक्षा बोटिकों को विशेष सम्मान देते थे । उनकी दृष्टि में बोटिक धर्मच्युत नहीं थे । सम्भवतः अभयदेव के समक्ष बोटिक सम्प्रदाय के कुछ ऐसे मुनि रहे होंगे, जिनमें उन्होंने यथार्थ रूप में मुनि-भाव पाया होगा अन्यथा वे जिनभद्र जैसे समर्थ आचार्य से भिन्न मत कैसे प्रकट करते? अभयदेव के पूर्व हरिभद्र ने आवश्यक नियुक्ति टीका में सभी निह्नवों को मिथ्यादृष्टि कहा है' अर्थात् उन्हें मान्यता की दृष्टि से भिन्न बताया है । किन्तु अन्य किसी के मत का सन्दर्भ देते हुए वे कहते हैं कि बोटिक तो द्रव्यलिङ्ग की दृष्टि से भी भिन्न हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि बोटिकों के लिङ्ग अर्थात् मुनिवेश की भिन्नता की चर्चा अनेक श्वेताम्बर आचार्यों ने की है ।
प्रसंग में उन्हें अचेल
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कहा गया है । हमें ग्रन्थों में मात्र इतना पिच्छी ( रजोहरण )
बोटिकों के लिङ्ग (बाह्यदेश ) की चर्चा के ( वस्त्ररहित ) और पाणीतलभोजी ( पात्ररहित आवश्यकभाष्य आदि अपेक्षाकृत प्राचीन स्तर के ही उल्लेख मिलता है । वे संयमोपकरण के रूप में और शौचोपकरण के रूप में कमण्डलु ( पात्र ) रखते थे या नहीं इसकी स्पष्ट चर्चा विशेषावश्यकभाष्य में नहीं है किन्तु पात्र के अभाव में शौच या अंगशुद्धि कैसे करते थे, यह विचारणीय प्रश्न है ? इसके दो ही विकल्प थे- या तो वे शौच के लिए सूखे पत्तों का अथवा नदी, झरने आदि के जल का उपयोग करते होंगे या फिर शौचोपकरण के रूप में पात्र रखते..
१. स्थानांगटीका, अभयदेव - स्थान ४, पू० २४१
२. आवश्यक नियुक्ति - हरिभद्रटीका
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