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तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : ३१७ कि निम्नसूत्र से प्रकट है-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग :-१२१ यह सूत्र श्वेताम्बर आगम के साथ पूर्णतया संगत नहीं है । वस्तुतः यह दिगम्बर सूत्र है और इसके द्वारा मोक्षमार्ग के कथन की उस दिगम्बर शैली को अपनाया गया है, जो कुन्दकुन्दादि के ग्रन्थों में सर्वत्र पाई जाती है।' मूर्धन्य विद्वान् आदरणीय जुगल किशोर जी मुख्तार को यह भ्रान्ति कैसे हो गई कि श्वे. मान्य आगमों में मात्र चतुर्विध (चउकारण संजुत्तं ) मोक्षमार्ग का विधान है-सम्भवतः उन्होंने 'तत्त्वार्थ-जैनागम समन्वय' नामक ग्रन्थ को देखकर ही यह धारणा बना ली और इस प्रसंग में श्वेताम्बर मान्य आगमों को देखने का कष्ट ही नहों उठाया। जिस उत्तराध्ययन के २८ वें अध्याय का प्रमाण उन्होंने दिया यदि उसे भी पूरी तरह देख लिया होता तो इस भ्रान्त धारणा के शिकार न होते। उत्तराध्ययन सूत्र के ही इसी अध्धयन को गाथा क्रमांक तोस में विविध साधना मार्ग का स्पष्ट उल्लेख है। वस्तुतः श्वेताम्बर आगमों में द्विविध से लेकर पंचविधरूप में मोक्षमार्ग का विवेचन हैद्विविध
'णाणकिरियाहिं मोक्खो'विज्जाचरण पमोक्खो।-सूत्रकृतांग नाणेण बिणा करणं करणेण बिणा ण तारयं णाणं ।
-चन्द्रावेध्यक ७३
त्रिविध
णाण सण चरित्ताइ पडिसेविस्सामि-इसिभासयाई, २३/२
आरियं णाणं साहू आरियं साहु दंसणं आरियं चरणं साहू तम्हा सेवह आरियं ।-वही १९/६ तिविहा आराहणा पन्नता तं जहा णाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा
-स्थानांग, ३/४/१९८चतुर्विधदसण णाण चरित्ते तवे य कुण आपमायं ति ।
-मरणविभक्ति १२६ उत्तराध्ययन सूत्र के २८ वें अध्ययन की गाथा २,३ एवं ३५ में भी: चतुर्विध मोक्ष मार्ग का कथन हुआ है। १. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, ले० जुगल किशोर मुख्तार :
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