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तत्त्वार्थसूत्र और उसको परम्परा : ३७७ कि उसकी प्राचीनता के सन्दर्भ में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है । अतः हमने ऊँचेहरा को ही अपनी गवेषणा का विषय बनाना उचित समझा । ऊँचेहरा मध्यप्रदेश के सतना जिले में सतना रेडियो स्टेशन से ११ कि०मी० दक्षिण की ओर स्थित है । ऊँचेहरा से ७ कि०मी० उत्तरपूर्व की ओर भरहुत का प्रसिद्ध स्तुप स्थित है, इससे इस स्थान की प्राचीजनता का भी पता लग जाता है । वर्तमान ॐ चेहरा से लगभग २ कि०मी० की दूरी पर पहाड़ के पठार पर यह प्राचीन नगर स्थित था, इसी से - इसका ऊँचानगर नामकरण भी सार्थक सिद्ध होता है । वर्तमान में यह वीरान स्थल 'खोह' कहा जाता है । वहाँ के नगर निवासियों ने मुझे यह भी बताया कि पहले यह उच्चकल्पनगरी कहा जाता था और यहाँ से बहुत सो पुरातात्विक सामग्री भी निकली थी । यहाँ से गुप्त काल अर्थात् ईसा की पाँचवीं शती के राजाओं के कई दानपत्र प्राप्त हुए हैं । इन ताम्र- दानपत्रों में उच्चकल्प (उच्छकल्प ) का स्पष्ट उल्लेख है, ये दानपात्र गुप्त सं० १५६ से गुप्त सं० २०९ के बोच के हैं । (विस्तृत विवरण के लिये देखें ऐतिहासिक स्थानावली - विजयेन्द्र कुमार माथुर, पृ० २६०२६१ ) । इससे इस नगर की गुप्तकाल में तो अवस्थिति स्पष्ट हो जाती है । पुनः जिस प्रकार विदिशा के समीप सांची का स्तूप निर्मित हुआ है उसी प्रकार इस उच्चैर्नगर ( ॐचहेरा ) के समीप भरहुत का स्तूप निर्मित हुआ था और यह स्तूप ई० पू० दूसरी या प्रथम शती का है । इतिहासकारों ने इसे शुंग काल का माना है । भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरण पर 'वाच्छित धनभूति का उल्लेख है।' पुनः अभिलेखों में 'सुगनं रजे' ऐसा उल्लेख होने से शुंग काल में इसका होना सुनिश्चित है । अतः उच्चैर्नागर शाखा का स्थापना काल ( लगभग ई० पू० प्रथम शती) और इस नगर का सत्ताकाल समान हो है । अतः इसे उच्चैर्नागर शाखा का उत्पत्ति स्थल मानने में काल दृष्टि से कोई बाधा नहीं है । ॐचेहरा ( उच्च कल्पनगर ) एक प्राचीन नगर था, इसमें अब कोई संदेह नहीं रह जाता है । यह नगर वैशाली या पाटलिपुत्र से वाराणसी होकर भरुकच्छ को जाने वाले अथवा श्रावस्ती से कौशाम्बी होकर विदिशा, उज्जयिनी और भरुकच्छ जाने वाले मार्ग में स्थित है । इसी
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१. भरहुत ( डॉ० रमानाथ मिश्र ), प्रकाशक - हिन्दी ग्रन्थ अकादमी भोपाल, ( म०प्र०) भूमिका पृ० १८
- २ . वही, पृ० १८-१९
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