________________
तत्वार्थ सूत्र के मूलपाठ का प्रश्न
तत्त्वार्थ सूत्र की परम्परा का निर्धारण करने के लिए तत्त्वार्थसूत्र के प्रचलित पाठों में कौन-सा पाठ मौलिक है, इसका निर्णय करना भी आवश्यक है । वर्तमान में तत्त्वार्थसूत्र के दो पाठ प्रचलित हैं - (१) भाष्यमान्य पाठ, जिसे सामान्यतया श्वेताम्बर सम्प्रदाय में स्वीकार किया जाता है और (२) सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ, जिसे दिगम्बर परम्परा में स्वीकार किया गया है। इन दोनों पाठों में से कौन-सा पाठ प्राचीन एवं मौलिक है, यह निर्णय इसलिए भी आवश्यक है कि उसके आधार पर ही तत्त्वार्थसूत्र की मौलिक परम्परा का निर्धारण किया जा सकता है । प्रचलित दोनों पाठों में तत्त्वार्थसूत्र का मूल प्राचीन पाठ कौन-सा है ? इस समस्या के समाधान हेतु जापानी विद्वान् सुजिका ओहिरो ने पर्याप्त परिश्रम किया है । " किसी परम्परा विशेष से आबद्ध न होने के कारण उनका निर्णय तटस्थ भी माना जा सकता है। डॉ० सुजिका ओहिरो ने इस समस्या के समाधान हेतु तीन दृष्टियों से विचार किया है
(१) भाषागत परिवर्तन, (१) सूत्रों का विलोपन और (३) सूत्रगत मतभेद |
तत्त्वार्थ सूत्र और उसकी परम्परा : २५३
इस सम्बन्ध में उनके विस्तृत निबन्ध का हिन्दी अनुवाद पं० सुखलाल जी द्वारा विवेचित तथा पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित तत्त्वार्थसूत्र में संकलित किया गया है । यहाँ हम उसी को आधार बनाकर संक्षेप में चर्चा करेंगे
➖➖
भाषागत परिवर्तनों के सन्दर्भ में उनका निष्कर्ष यह है कि श्वेताम्बर मान्य पाठ आगमनुसार है, जबकि दिगम्बर मान्य पाठ में व्याकरण को प्रधानता दी गई है | व्याकरण और पदविन्यास की दृष्टि से पूज्यपाद ने तत्त्वार्थ सूत्र के सूत्रों को निम्न दृष्टि से परिमार्जित किया है
(अ) एक तरह के भावों का संयुक्तिकरण करने के लिए दो सूत्रों का एक सूत्र में समावेश ।
(ब) शब्दक्रम की सम्यक् समायोजना |
(स) अनावश्यक शब्दों को निकालना और स्पष्ट भावाभिव्यक्ति के लिए कम से कम शब्दों को जोड़ना ।
Jain Education International
१. देखें —– तत्त्वार्थसूत्र, पं० सुखलाल जी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी, ५, भूमिका भाग पृ० ८४-१०७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org