________________
तत्वार्थसूत्र और उसको परम्परा : २८३ इसमें अवधिज्ञानके द्वितीय भेदका नाम 'यथोक्तनिमित्तः' दिया है और भाष्य में 'यथोक्तनिमित्तः क्षयोपशमनिमित्त इत्यर्थः' ऐसा लिखकर 'यथोक्तनिमित्त' का अर्थ 'क्षयोपशमनिमित्त' बतलाया है; परन्तु 'यथोक्त' का अर्थ 'क्षयोपशम' किसी तरह भो नहीं बनता। 'यथोक्त' का सर्वसाधारण अर्थ होता है जैसा कि कहा गया', परन्तु पूर्ववर्ती किसी भी सूत्र में 'क्षयोपशमनिमित्त' नाम से अवधिज्ञान के भेद का कोई उल्लेख नहीं है और न कहीं 'क्षयोपशम' शब्द का ही प्रयोग आया है, जिससे 'यथोक्त' के साथ उसकी अनुवृत्ति लगाई जा सकती। ऐसी हालत में 'क्षयोपशमनिमित्त' के अर्थ में 'यथोक्तनिमित्त' का प्रयोग सूत्रसन्दर्भ के साथ असंगत जान पड़ता है। इसके सिवाय, 'द्विविधोऽवधिः' इस २१वें सूत्र के भाष्य में लिखा है-'भवप्रत्ययः क्षयोपशमनिमित्तश्च' और इसके द्वारा अवधिज्ञान के दो भेदों के नाम क्रमशः 'भवप्रत्यय' और 'क्षयोपशमनिमित्त' बतलाये हैं। २२वें सूत्र ‘भवप्रत्ययो नारकदेवानाम्' में अवधिज्ञान के प्रथम भेद का वर्णन जब भाष्यनिर्दिष्ट नाम के साथ किया गया है तब २३वें सूत्र में उसके द्वितीय भेद का वर्णन भी भाष्यनिर्दिष्ट नाम के साथ होना चाहिये था और तब उस सूत्र का रूप होता-"क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्", जैसा कि दिगम्बर सम्प्रदाय में मान्य है। परन्तु ऐसा नहीं है, अतः उक्त सत्र और भाष्य की असंगति स्पष्ट है और इसलिये यह कहना होगा कि या तो 'यथोक्तनिमित्तः' पद का प्रयोग ही गलत है और या इसका जो अर्थ 'क्षयोपशमनिमित्तः' दिया है वह गलत है तथा २१वें सूत्रके भाष्यमें 'यथोक्तनिमित्त' नाम को न देकर उसके स्थान पर 'क्षयोपशमनिमित्त' नाम का देना भी गलत है। दोनों ही प्रकार से सूत्र और भाष्य को पारस्परिक असंगति में कोई अन्तर मालूम नहीं होता।"
प्रस्तुत विवेचन से आदरणीय जुगलकिशोर जी मूल और भाष्य में जिस असंगति को दिखाना चाहते हैं, वह असंगति तो वहाँ कहीं परिलक्षित ही नहीं हो रही है-भाष्य में 'यथोक्तनिमित्त' को स्पष्ट करते हुए यह बताया है कि 'यथोक्त निमित्त' का तात्पर्य क्षयोपशम रूप निमित्त हैं। सम्भवतः यहाँ मुख्तार जी यह मानकर चल रहे हैं कि भाष्यकार ने यथोक्त शब्द का अर्थ क्षयोपशम किया है जो किसी प्रकार से नहीं बनता १. जैन साहित्य और इतिहास पर विशदप्रकाश, पण्डित जुगलकिशोर जो
मुख्तार पृ० १२६-२७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org