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१७० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय का नाम विशाखाचार्य होने का उल्लेख है। साथ ही यह भी उल्लेख है कि सुकाल होने पर वे दक्षिण से पुनः मध्यदेश आये। जबकि दिगम्बर परम्परा में चन्द्रगुप्त का मुनि दीक्षा का नाम प्रभाचन्द्र बताया गया है और वह चन्द्रगुप्त और भद्रबाहु दोनों का दक्षिण में ही देहान्त होने की बात कहती है। ___ इस प्रकार यह कथानक भी दिगम्बर परम्परा की मान्यताओं से थोड़ा हटकर है, अतः इसे यापनीय होना चाहिए । श्रीमती डा० कुसुम पटोरिया यह स्वीकार करती हैं कि भद्रबाहु कथा का यह मतभेद भी बृहकथाकोशकार के यापनीय होने का संकेत करता है। यद्यपि इसमें अर्ध स्फालक से श्वेताम्बर काम्बल तीर्थ की और उस काम्बलतीर्थ से यापनीय संघ की उत्पत्ति की कथा जिस रूप में प्रस्तुत हैं-उससे ऐसा लगता है कि यह ग्रन्थ यापनीय संघ का नहीं हो। किन्तु डा० श्रीमती कुसुम पटोरिया की स्पष्ट मान्यता है कि इसमें यापनीयों की उत्पत्ति सम्बन्धी कथाभाग प्रक्षिप्त है।
वे लिखती हैं कि "इस अंश को पढ़ने से प्रतीत होता है कि अर्द्धफालक सम्प्रदाय से काम्बलतीर्थ की उत्पत्ति बताकर यह कथा समाप्त हो गई है । समाप्त कथा में एक श्लोक जोड़कर यापनीयों की उत्पत्ति का कथन प्रक्षिप्त लगता है। क्योंकि जब हरिषेण ने काम्बलतीर्थ की उत्पत्ति की कथा अनेक पद्यों में विस्तार से दी है, तो यापनीयों की उत्पत्ति की कथा भी विस्तार से दी जानी चाहिए थी। अन्तिम श्लोक यापनीय विरोधी व्यक्ति द्वारा जोड़ा हुआ प्रतीत होता है, अपने कथन को वजन देने के लिए 'नन' शब्द जोड़ा गया है। हरिषेण को यापनीय मानने के लिए स्त्रीमुक्ति तथा गृहस्थमुक्ति के उल्लेख प्रबल प्रमाण हैं'२ । हरिषेण और जिनसेन रचित हरिवंश पुराण
हरिषेण और जिनसेन रचित हरिवंश पुराण को भी विद्वानों ने निम्न कारणों से यापनीय ग्रन्थ माना है
त्यक्त्वाऽर्धकर्पटं सद्यः संसारात् त्रस्तमानसाः।
नम्रन्थ्यं हि तपः कृत्वा मुनिरूपं दधुस्त्रयः ॥ १३१/६६ । १. भद्रबाहुगुरोः शिष्यो विशाखाचार्यनामकः।
मध्यदशं स संप्राप दक्षिणापथदेशतः ॥ १३१/४६ ॥ २. यापनीय और उनका साहित्य, पृ० १५३
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