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२०८ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
सम्प्रदाय के रहे होंगे । क्योंकि दिगम्बर परम्परा के आचार्य तो जिनकल्प और स्थविर कल्प ऐसी मान्यता को ही स्वीकार नहीं करते हैं । इससे तत्त्वार्थसूत्र का यापनीय प्रभाचन्द्र की कृति होना सुनिश्चित होता है । इनके साथ लगा हुआ बृहद् विशेषण भी इन्हें न्याय मुकुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र से पूर्ववर्ती सिद्ध करता है इसकी पुष्टि अभिलेखनीय साक्ष्य से हो जाती है ।
विमलसूरि और उनका पउमचरियं
क्या विमलसूरि का पउमचरियं यापनीय है ?
विमलसूरि और उनके ग्रन्थ पउमचरियं के सम्प्रदाय सम्बन्धी प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद पाया जाता है । जहाँ श्वेताम्बर' और विदेशी विद्वान् पउमचरियं में उपलब्ध अन्तः साक्ष्यों के आधार पर उसे श्वेताम्बर परम्परा का बताते हैं, वहीं पउमचरियं के श्वेताम्बर परम्परा के विरोध में जानेवाले कुछ तथ्यों को उभार कर कुछ दिगम्बर विद्वान् उसे दिगम्बर या यापनीय सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं । वास्तविकता यह है कि विमलसूरि के पउमचरियं में सम्प्रदायगत मान्यताओं की दृष्टि से यद्यपि कुछ तथ्य दिगम्बर परम्परा के पक्ष में जाते हैं, किन्तु अधिकांश तथ्य श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में ही जाते हैं । जहाँ हमें सर्वप्रथम इन तथ्यों की समीक्षा कर लेनी होगी। प्रो० बी० एम० कुलकर्णी ने जिन तथ्यों का संकेत प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी से प्रकाशित 'पउमचरियं' की भूमिका में किया है, उन्हीं के आधार पर यहाँ हम यह चर्चा प्रस्तुत करने जा रहे हैं ।
पउमचरियं की दिगम्बर परम्परा से निकटता सम्बन्धी कुछ तथ्य(१) कुछ दिगम्बर विद्वानों का कथन है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सामान्यतया किसी ग्रन्थ का प्रारम्भ - 'जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा, इस प्रकार से होता है, आगमों के साथ-साथ कथा ग्रन्थों में यह पद्धति मिलती है, इसका उदाहरण संघदासगणि की वदेवसु हिण्डी है । किन्तु वसुदेवहिण्डी में जम्बू ने प्रभव को कहा- ऐसा भी
१. पउमचरियं भाग-१, इण्ट्रोडक्सन पेज १८, फुटनोट न० २ । २. वही,
३. देखें, पद्मपुराण ( रविषेण), भूमिका, डॉ० पन्नालाल जैन, पृ० २२-२३ । ४. पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन (बी० एम० कुलकर्णी), पेज १८-२२ ।
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