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यापनीय साहित्य : २०३ शाकटायन के द्वारा इन ग्रन्थों का अपनी परम्परा के ग्रन्थों के रूप में उल्लेख यही सूचित करता है कि वे दिगम्बर न होकर यापनोय पर- .. म्परा के थे। ___ (४) अमोघवृत्ति में शाकटायन ने सर्वगुप्त को सबसे बड़ा व्याख्याता बतलाया है,' ये सर्वगुप्त वही जान पड़ते हैं जिनके चरणों में बैठकर आराधना के कर्ता शिवार्य ने सूत्र और अर्थ को अच्छी तरह से समझा था। यह हम पूर्व में ही सिद्ध कर चुके हैं कि शिवार्य और उनकी भगवती आराधना यापनीय परम्परा से संबद्ध है। शाकटायन द्वारा शिवार्य के गुरु का श्रेष्ठ व्याख्याता के रूप में उल्लेख भी यही सूचित करता है कि वे भी यापनीय थे। . (५) शाकटायन को 'श्रुतकेवलिदेशीयाचार्य' कहा गया है। इस सम्पूर्ण पद का अर्थ है श्रुतकेवली तुल्य आचार्य । पाणिनि (५/३/६७) के अनुसार देशीय शब्द तुल्यता का बोधक है। श्रुतकेवली का विरुद दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्हें प्रदान नहीं किया जा सकता, क्योंकि जब श्रुत ही समाप्त हो गया तो कोई श्रुतकेवली कैसे हो सकता है ? श्वेताम्बर और यापनियों में ऐसी पदवियाँ दी जाती थीं, जैसे हेमचन्द्र को कलिकालसर्वज्ञ कहा जाता था। इसी प्रकार उन्हें यतिग्रामअग्रणी भी कहा गया है यह विरुद भी सामान्यतया श्वेताम्बर और यापनीयों में ही प्रचलित था। दिगम्बर परम्परा में यापनीयों के प्रभाव के कारण ही मुनि के लिए यति (प्राकृत-जदि) विरुद प्रचलित हुआ है । हम यह पूर्व में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि 'यति' विरुद भी उनके यापनीय होने का प्रमाण है। मलयगिरि द्वारा नन्दीसूत्र टोका में उन्हें यापनीय यतिग्रामअग्रणी कहना इसको पुष्टि करता है । शाकटायन के शब्दानुशासन को यापनीय टीकाएं :
शाकटायन के शब्दानुशासन पर सात टीकाएँ उपलब्ध होती हैं उनमें अमोघवृत्ति और शाकटायन-न्यास महत्त्वपूर्ण है। अमोघवृत्ति के लेखक स्वयं शाकटायन ही है, अतः यह शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ टोका
१. उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः-शाकटायन व्याकरणम्, अमोघवृत्ति ११३।१०४ । २. देखे-शाकटायन व्याकरणम् (सं० पं० शम्भुनाथ त्रिपाठी) Introduction,
Page. 17. एवं जैनसाहित्य और इतिहास पृ० १५९ । ३. नन्दीसूत्र मलयगिरि टीका पृ० २३ ।
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