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१४६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
किन्तु इन्द्र नाम के श्वेताम्बर आचार्य का अभी तक कोई उल्लेख नहीं मिला है, बहुत सम्भव है कि ये यापनीय हों और श्वेताम्बर तुल्य होने से श्वेताम्बर कह दिये गये हों। द्विकोटिगत ज्ञान को संशय कहते हैं, जो श्वेताम्बर सम्प्रदाय में घटित नहीं हो सकता परन्तु यापनीयों को कुछ श्वेताम्बर और कुछ दिगम्बर होने के कारण शायद संशय मिथ्यादृष्टि कह दिया गया हो। बहुत सम्भव है कि शाकटायन सूत्रकार ने इन्हीं इन्द्र गुरु का उल्लेख किया हो ।' शाकटायन यापनीय थे, यह सुस्पष्ट है अतः उन्होंने जिस इन्द्रगुरु का उल्लेख किया है वे भी यापनीय होंगे इसमें सन्देह नहीं किया जा सकता।
प्रायश्चित्त संग्रह को भूमिका में पं० नाथूराम जी प्रेमी ने भी गोम्मटसार में सांशयिक के रूप में उल्लिखित और शाकटायन द्वारा इन्द्र गुरु के रूप में उल्लिखित इन्द्रनन्दि के अतिरिक्त भी चार अन्य इन्द्रनन्दि नामक आचार्यों का उल्लेख किया है और इस प्रश्न पर विचार किया है कि इनमें कौन से इन्द्रनन्दि छेद पिण्डशास्त्र के कर्ता हैं ? यद्यपि इस सम्बन्ध में मेरा दृष्टिकोण आदरणीय पण्डितजी के दृष्टिकोण से भिन्न है(१) अय्यपार्य ने जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय (ई० सन् १३१९) में किसी इन्द्रनन्दि के पूजाक्रम का उल्लेख किया है । इससे फलित होता है कि ई० सन् १३१९ के पूर्व कोई पूजा विषयक ग्रन्थ इन्द्रनन्दि द्वारा लिखा गया था जिस क्रम से इसमें आचार्यों का उल्लेख हुआ है यदि उसे ऐतिहासिक दृष्टि से सत्य मानें तो ये इन्द्रनन्दि वसुनन्दी के पश्चात् और आशाधर के पूर्व हुए होंगे अतः इनका समय लगभग ईसा की १३वीं शती होगा। किन्तु मेरी दृष्टि में ये इन्द्रनन्दी पर्याप्त परवर्ती हैं और ये उस छेदपिण्ड के कर्ता नहीं हो सकते, जिसमें जीत, कल्प एवं व्यवहार के अध्ययन के स्पष्ट निर्देश हैं । उस काल तक यापनीय परम्परा विलुप्त-सी हो गई थी और श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित इन ग्रन्थों से दिगम्बर परम्परा अपरिचित थी।
(२) दूसरे इन्द्रनन्दि वर्तमान में उपलब्ध इन्द्रनन्दि-संहिता के रचयिता
१. जैनसाहित्य और इतिहास (पं० नाथूराम प्रेमी) पृ० १६७ । २. वीराचार्य सु पूज्यपाद जिनसेनाचार्य संभाषितो.
यः पूर्व गुणभद्रसूरि वसुनन्दीन्द्रादिनन्युजितः । यश्चाशाधर हस्तिमल्लकथितो यश्चैक संघिस्ततः, तेभ्य स्वाहृत्सारमध्यरचितः स्याज्जनपूजाक्रम
-उद्धृत प्रायश्चित्त संग्रह भूमिका पृ० ४ ।
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