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१६४ : जैनधर्म का यापनोय सम्प्रदाय
दोनों उल्लेखों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि समवायांग में जहाँ दसवां अध्ययन 'समाधि' कहा गया है, वहीं प्रतिक्रमण ग्रन्थययी की इस गाथा में उसे 'अग्र' कहा गया है । इसी प्रकार तेरहवें अध्याय का नाम जहाँ समवायांग में आख्यात - हित है वहाँ इस प्रतिक्रमण सूत्र में उसे 'त्रिकाल' कहा गया है । इसी प्रकार समवायांग में पंद्रहवाँ अध्याय यमतीत के नाम से उल्लेखित है कि इसमें 'आत्मा' के नाम से उल्लेखित किया गया है । यद्यपि मुझे ऐसा लगता है कि मूल गाथा के 'गंथहिदे आदा' यही 'ग्रन्थ' नामक अध्याय का पूरा नाम होना चाहिए, जिसका तात्पर्य है 'आत्मा की हृदय ग्रन्थि' जिसे समवायांग सूत्र में 'ग्रन्थ' कह कर ही उल्लेखित किया गया है । प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी में 'तदित्थ' का जो उल्लेख है वह मुझे 'यमतीत' का ही विकृत रूप प्रतीत होता है । समवायांग में २१वें अध्याय को 'अनगारश्रुत' कहा गया है, जबकि इस गाथा में उसे अणगार कीर्ति श्रुत के नाम से उल्लेखित किया गया है' किन्तु दोनों के अर्थ में कोई अन्तर नहीं है । श्वेताम्बर मान्य समवायांगसूत्र के अनुसार इसके २२ वें अध्याय का नाम 'आद्रय' है, जबकि प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी की इन गाथाओं में उसे 'अत्था' कहा गया है। वस्तुतः मूल शब्द अद्दइज्जं रहा है जिसका अर्थ परवर्ती यापनीय आचार्यों को स्पष्ट न होने से उन्होंने उसे 'अत्था' कर दिया और उसका तात्पर्य अर्थाधिकार बताया ।
यदि हम इन गाथाओं की प्रभाचन्द्र टीका देखते हैं, तो ज्ञात होता है कि उनके काल तक यापनीय परम्परा में सूत्रकृतांग के अध्ययन की प्रवृति समाप्त हो गई थी, वे मूल ग्रन्थ से परिचित भी नहीं थे । यही कारण है कि उन्होंने अनेक अध्ययनों के नामों की जो व्याख्यायें की हैं वे अत्यन्त भ्रान्त है । उदाहरण के रूप में 'समय' नामक प्रथम अध्याय की विषय वस्तु को 'अध्ययन- काल' के रूप में प्रतिपादित किया है, जो कि बिलकुल भ्रान्त है । उपलब्ध सूत्रकृतांग में समय नामक प्रथम अध्याय विविध दार्शनिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत करता है और समय की यह सिद्धान्त परक व्याख्या दूसरे टीकाकारों ने की है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ दोनों में अध्यायों के मूलनामों में समानता है वहाँ प्रत्रिक्रमणग्रन्थत्रयी के टीकाकार के विचार अलग हैं, उसका मूल कारण यही है उस काल में यापनीय आचार्यों के समक्ष सूत्रकृतांग नहीं था । अन्यथा वे इनकी भ्रान्त व्याख्या नहीं करते । प्रतिक्रमणसूत्र के इस निर्देश के अतिरिक्त सूत्रकृतांग के अध्यायों का नामपूर्वक उल्लेख अन्य किसी भी दिगम्बर ग्रन्थ
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