Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
View full book text
________________
* मंगल कामना *
आज मैं अत्यंत ही गौरव का अनुभव कर रहा हूँ कि साध्वी श्री प्रियलताश्रीजी ने 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' पर शोध करने का अद्भुत कार्य किया है। लेखन निष्ठा को देखकर उनकी प्रतिभा संपन्नता व परिपक्वता का बोध होता है। संघ आप जैसी उदीयमान साध्वी श्री को पाकर गौरवान्वित है। मेरी शुभ कामना है कि अपनी स्वाध्याय वृति को निरंतर गतिमान रखकर संघ एवं समाज को अपने अमूल्य अवदानों से लाभान्वित करती रहें। आगे भी अधिक परिश्रम पूर्वक तथा सजगता से विविध ग्रन्थों की रचनाकर जैन विधा के भण्डार को समृद्ध करें। इसी मंगल कामना के साथ,
- गौतमचंद कोठारी
फलोदी
प्राचार्य - श. उ. मा. वि.,
* प्रज्ञाभिनंदन *
साध्वी श्री प्रियलताश्रीजी ने 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' पर शोध कार्य करके एक चुनौति स्वीकार करते हुए अपनी उर्जाभरी पैनी प्रज्ञा का सदुपयोग कर अपनी प्रतिभा को निखारा है।
Jain Education International
साध्वीश्रीजी के शोध ग्रन्थ प्रकाशन के स्वर्णिम पलों में उनको मैं हार्दिक बधाई देता हूँ। इस प्रवाहपूर्ण प्रांजल लेखनी से साहित्य समाज को समृद्ध बनाने में उन्होंने अपना योगदान अर्पण किया है। इस ग्रंथ के माध्यम से साध्वी श्री ने बहिरात्मा से अन्तरात्मा और अन्तरात्मा से परमात्म दशा को कैसे उपलब्ध करें, इसकी विस्तृत जानकारी देकर हमें आध्यात्म मार्ग की ओर प्रेरित किया है। यह 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' ग्रंथ जनसमुदाय के लिए अत्यन्त उपयोगी, सार्थक सिद्ध होगा।
साध्वी श्री ने अपनी विशिष्ट प्रतिभा के माध्यम से लेखन को गति प्रदान कर, इस कार्य को लगन व परिश्रम से पूर्ण किया है। मैं हार्दिक ज्ञानाभिनंदन करता हूँ। इसी तरह उत्तरोत्तर अभिवृद्धि कर शासन सेवा में संलग्न रहें यही शुभेच्छा,
- गोविन्दचंद मेहता
अध्यक्ष- कुशल एजुकेशन ट्रस्ट, मुंबई जहाज मंदिर उपाध्यक्ष, जोधपुर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org