Book Title: Jain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Author(s): Priyalatashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
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* एक जीवन - तीन रूप*
इस संसार का प्रत्येक प्राणी तीन प्रकार का जीवन जीता है। एक उसका बाह्य प्रदर्शन एवं व्यवहार होता है, तो दूसरी ओर उससे भिन्न उसके संस्कार तथा विचार होते हैं। उसका तृतीय रूप उसका शुद्ध शाश्वत अपरिवर्तनीय स्वरूप होता है।
परम पूज्य साध्वी श्री प्रियलताश्रीजी द्वारा रचित शोध प्रबन्ध 'जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा' जीवन के इन तीनों रूपों का विशद एवम् विस्तृत विवेचन किया गया है। इसका नियमित पारायण, चिन्तन तथा मनन जीवन में सही दिशा में अग्रसर होने में अवश्य सहायक होगा।
नवीनचन्द्र नथमल सावनसुखा इन्दौर, 26-10-2007
* अंतर के द्वार से *
पूज्या साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म.सा. की सुशिष्या समतासाधिका, ज्ञान उपासिका, गंभीर विद्वत्ता और हृदयस्पर्शी विनम्रता, सरलता और मधुरता, संयम नपी तुली मिष्टवाणी और स्पष्ट प्रवाहपूर्ण लेखन, वात्सल्य और स्नेह में सनी दृष्टि, हर स्थिति में विहंसती भावमद्रा, इस गुण रूपधारी भव्य व्यक्तित्व का नाम है 'साध्वी डॉ. प्रियलताश्रीजी म.सा.' जिन्होंने जैन त्रिविध आत्मा के उपर सरल, हृदयंगम, संशोधन करके साधको की ज्ञानपिपासा को पूर्ण करने का प्रयास किया है, वह अनुमोदनीय है। ज्ञान-समता की मूर्ति साध्वीजी भगवंत रत्नत्रयी की आराधना के लिए ऐसे ही अनेकानेक संशोधन करके साधकों को नई दृष्टि प्रदान करें... ऐसी शासनदेव को अंतस्थल की अभ्यर्थना...
नरेन्द्रभाई कोरडिया प्राचार्य - जैन ज्ञानशाला, नाकोडा तीर्थ
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