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२९ ११) अतिचारों से युक्त चारित्र, शील, व्रतादि पालन से । १२) शब्द अथवा संकेत से परवंचना का षडयंत्र रचने से । १३) दो व्यक्ति के बीच या पर परिणामों में भेद उत्पन्न करने से । १४) वर्ण, रस, गंध, आदि से विकृत करने की अभिरुचि से । १५) सद्गुण लोप और असद्गुण जानने से । १६) मरते समय आर्तध्यान करने से ।
इस प्रकार से माया के अन्य अनेक लक्षणों से जीव तिर्यंच गति के आयुष्य का आस्रव करता है। जिसके कारण भवान्तर में उस जीव को तिर्यंचगति प्राप्त होती है ।३९ ३) मनुष्य :
मनुष्यायु का मुख्य चार कारणों से आस्रव होता है
अल्प आरंभ; अल्प परिग्रह; स्वाभाविक मृदुता और स्वाभाविक सरलता | इसके अतिरिक्त भी अन्य कई कारण हैं
१) आरंभ-वृत्ति तथा परिग्रह-वृत्ति रखना । २) स्वभाव में कोमलता-आठ प्रकार के मद का अभाव या अल्प मद । ३) स्वभाव में सरलता-मन, वचन, काया की यथार्थ प्रवृत्ति प्रियता । ४) मिथ्या दर्शन होते हुए भी अति विनीत भाव होना । ५) शीघ्र समझा जा सके ऐसी सरल प्रकृति का हो । ६) स्वागतादि-प्रियता अथवा अभिलाषा होना । ७) स्वभाव में मिठास अथवा मधुरता हो । ८) लोकसेवा की स्वाभाविक वृत्ति-लोकयात्रा का अनुग्रह होना । ९) उदासीनता अर्थात् स्वाभाविक पतले कषाय होना । १०) देव, गुरू, पूजा की वृत्ति । ११) अतिथि संविभाग-दान देने की वृत्ति । १२) कापोत लेश्या के परिणाम । १३) धर्मध्यान का प्रेम और उसमें प्रवृत्ति ।
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