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अधोलोक में प्रायः आवासो में स्थित भवनों में रहनेवाले देवों को भवनवासी देव कहते हैं । जिन भवनों में ये देव निवास करते हैं, उनके स्वामी को भवनपति कहते हैं ।५४
१. भवनवासी देवों के भेद :तत्त्वार्थसूत्र में देवों के दस भेदों का उल्लेख है५५, ये निम्न हैं
१) असुरकुमार ६) वातकुमार २) नागकुमार ७) स्तनितकुमार ३) विद्युत्कुमार ८) उदधिकुमार ४) सुवर्णकुमार ९) द्वीपकुमार और ५) अग्निकुमार १०) दिक्कुमार ।
२. कुमारनाम की सार्थकता इन सभी देवों के नाम के साथ 'कुमार' शब्द प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि वे कुमारों के समान चेष्टा करते हैं । अतएव 'कुमार' कहलाते हैं । सभी देव कुमारों की तरह मनोहर तथा सुकुमार दिखते हैं । इनकी चाल (गति) कुमारों की तरह मृदु मधुर और ललित होती हैं । श्रृंगार प्रसाधनार्थ ये नाना प्रकार की विशिष्ट एवं विशिष्टतर उत्तरविक्रिया क्रिया करते हैं । कुमारों की तरह ही इनके रूप, वेशभूषा, भाषा, आभूषण, शस्त्रास्त्र, यान एवं वाहन ठाठदार होते हैं । ये कुमारों के सदृश तीव्र अनुराग-परायण एवं क्रीडा तत्पर होते हैं । इसलिए इनके नाम के पीछे कुमार शब्द प्रयुक्त हुआ है ।५६
भवनपति के प्रकारों का स्वरूप निरूपण :दस प्रकार के इन देवों का स्वरूप और लक्षणों का निर्देश निम्न प्रकार से उपलब्ध होता है :१. असुरकुमार :
रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन विभागों में से पंकबहुल भाग में रहनेवाले ये असुरकुमार तीन नरक तक परस्पर नारकियों को लड़ाते हैं-अति कष्ट देते हैं । ये गंभीर, सुंदर, काले, उन्न रत्नमय मुकुट धारी होते हैं । सात हाथ ऊंचे, कृष्ण वर्ण के, रक्त वस्त्रवाले ये देव मुकुट में चूडामणि के चिह्न से पहचाने जाते हैं ।
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