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२२९ को विशेष स्पष्ट करने के लिए आगे और विशेषण दिया है—७७
ववगयगहचंदसूरनक्खत्तजोइसपहा-उन नरकावासों में ग्रह, चंद्र, सूर्य, नक्षत्र, तारा आदि ज्योतिष्कों के पथ-संचार का रास्ता नहीं है । अर्थात् ये प्रकाश करने वाले तत्त्व वहाँ नहीं है ।
मेयवसापूयरू हिरमंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला-उन नरकावासों का भूमितल मेद, चर्बी, पूति(पीप), खून और मांस के कीचड़ से सना हुआ है, पुनः पुनः अनुलिप्त है।
असुइबीभच्छा-मेदादि के कीचड के कारण अशुचिरूप होने से अत्यन्त घृणोत्पादक और बीभत्स हैं उन्हें देखने मात्र से ही अत्यन्त ग्लानि होती है ।
परमदुब्भिगंधा-वे नरकावास अत्यंत दुर्गन्ध वाले हैं । उनसे वैसी दुर्गन्ध निकलती रहती है जैसे मरे हुए जानवरों के कलेवरों से निकलती है ।।
काउअगणिवण्णाभा-लोहे को धमधमाते समय जैसे अग्नि ज्वाला का वर्ण बहुत काला हो जाता है-इस प्रकार के वर्ण के वे नरकावास हैं । अर्थात् वर्ण की अपेक्षा से अत्यन्त काले हैं ।
कक्खडफासा-उन नरकावासों का स्पर्श अत्यन्त कर्कश है । असिपत्र (तलवार की धार) की तरह वहाँ का स्पर्श अति दुःसह है ।।
दुरहियासा-वे नरकावास इतने दुःखदायी हैं कि उन दुःखों को सहन करना बहुत ही कठिन होता है।
असुभा वेयणा-वे नरकावास बहुत ही अशुभ हैं । देखने मात्र से ही उनकी अशुभता मालूम होती है । वहाँ के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और शब्द-सब अशुभ ही अशुभ हैं तथा वहाँ जीवों को जो वेदना होती है वह भी अतीव असातारूप होती है अतएव 'अशुभवेदना' ऐसा विशेषण दिया गया है ।७८ ।
नरकावासों में इस प्रकार की तीव्र एवं दुःसह वेदनाएँ होती हैं । इसी प्रकार सातों पृथ्वी की वेदना है।
२. नैरयिक के उष्णवेदना का स्वरूप असत्कल्पना के अनुसार उष्णवेदनीय नरकों से निकल कर कोई नैरयिक जीव इस मनुष्यलोक में जो गुड पकाने की भट्ठियाँ, शराब बनाने की भट्ठियाँ,
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