Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 310
________________ २८३ यह दोझख-नरक के लिए गाथा में 'द्रुजो देमान' (बुराई का धाम) नामक एक ही दोझख मान्य किया है तो अवेस्ता में हादोख्त नस्क में दोझख भी चार विभाग में विभाजित किया गया है । १. दुशमत (बुरे विचारों का) २. दुझुख्त (बुरे वचनों का) ३. दुझवरश्त (बुरे कार्यों का) ४. सब से भयानक और अत्यन्त दुःखमय स्थान है वह 'अनघ्र तेमह' अथवा अपार अंधकार का दोझख ।७५ ___ यह दोझख की जगह चिनवल पुल के नीचे कल्पित की गई है । वहाँ एहरेमन (शयतान) तिरस्कार और कटु वचनों से पापियों को आवकार देते हैं । जहाँ जैन मत में सात नरक मान्य की गई है, वहाँ इस मत में चार नरक माने हैं तथा परमाधामी के समान एहरेमन (शयतान) माना गया है । सातवीं नरक जिसका नाम ही तमस्तमानरक है और घोर अंधकार माना गया है वहाँ अनघ्र तेमह में भी घोर अंधकार स्वीकार किया गया है। ___ पहेलवी पुस्तक के अरदाविराफनामा में कथन है, कि बहेश्त में उत्तम खुराक, दमामदार पोशाक, सुंदर वातावरण, मनोहर संगीत, दिलकश देखाव, ईझद अमशास्पदों (देवी शक्तियों, फिरश्तों) की महर और दावर अहुरमझद की मुहब्बत रहती है । इसी प्रकार दोझख (नरक) में साप, कनखजूरा, बिच्छू, कीड़े और अन्य नाशकारक प्राणी पापियों को दुःख पहुंचाते हैं । किसी को तीक्ष्ण हथियारों से ईजा पहुंचाई जाती है तो किसी को उकलते प्रवाही से जलाया जाता है । किसी को भूखा मारा जाता है तो किसी को अत्यंत गंदा और नापसंद खाने को दिया जाता है। जिसके पाप और पुण्य एक समान होते है, उनका क्या होता है । वे कहाँ रहते हैं ? तो उनका पहेलवी साहित्य में, जैसे कि मीनोअखेरद आदि में इस प्रश की चर्चा है कि इस जगत् के और सितार पाये के बहेश्त की बीच में एक "हमेश्तगान" (Purgatory) नामक जगह ऐसे लोगों के लिये हैं । वह जगह बहुत कुछ इस जगत् के जैसा ही है। वहाँ न अधिक दुःख है और न अधिक सुख है । मात्र गर्मी या सर्दी की सख्ती का अनुभव कभी कभी होता है । जब तक 'रस्ताखीझ' (कयामत) होती है, तक उसे वहा रहना पड़ता है। स्वर्ग और नरक में जीव कब तक रहता है ? गाथा (यस्न ४६, ११) के अनुसार दोझख कायम अर्थात्, हमेंशा रहता है । विद्वान थियोसोफिस्ट अखद खुरशेद दाबु बिलकुल अन्य रीति से पुनर्जन्म के अनुसार प्रस्तुत करते हैं-कि ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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