Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 314
________________ २८७ २. इस दोझख का नाम 'लझा' है और वह मात्र यहूदियों के लिये हैं । ३. तीसरा दोझख हुतम नाम का मात्र ईसाईयों के लिये है । ४. सईर नामक चौथा दोझख सेबयन के लिये है । ५. पांचवाँ दोझख सकर नामका मात्र जरथोरितियों के लिये है । ६. यह जहीम नामका है, उसमें मूर्तिपूजक दुःख पायेंगे । ७. साँतवा दोझख है - हा विये, यह खासतौर पर ढोंगियो के लिये है । मतलब कि जो बातेन से अमुस्लिम होने पर भी अपने आपको मुस्लिम होने का ढोंग करके दूसरों को छलते हैं, वे हाविये में सजा भोगेंगे 14 यहाँ मुस्लिम तथा अन्य धर्मावलम्बियों के लिये अलग अलग विधान किया गया है । जो अमुस्लिम है, उनको तो सदा ही नरक में रहना पड़ेगा । ऐसा मान्य किया गया है । फिर भी जो सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान, परमकृपालु, इन्साफी अल्लाह की शरण लेंगे, चाहे वे मुस्लिम होंगे या अमुस्लिम होंगे, वे यदि "उस मालिक की मर्जी के अनुसार ही सर्वत्र अमल हो "ऐसा जो सर्वमान्य शास्त्रवचन है, उसमें श्रद्धा रखकर, परस्पर प्रेम से वर्तन करेंगे तो सब कोई अपने अपने पुण्य के अनुसार देर अवेर से ईश्वर के कृपापात्र होंगे । जिस प्रकार जैन मत में सात नरक मान्य है उसी प्रकार मुस्लीम मत में भी सात ही संख्या नरकों की मानी है । किन्तु मत भिन्नता यह है कि सब के लिये अलग अलग नरक का विधान नहीं है । सदैव नरक में ही रहे ऐसी मान्यता जैन की नहीं है । संख्या में समानता अवश्य है । स्वर्ग की संख्या में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है । इतना अवश्य है कि जो सत्कार्य करके, पुण्योपार्जन करता है, वह स्वर्ग में एवं जो दंभ, पाप, माया आदि करता है, वह नरक की यातनाओं में पीडाता है । टिप्पण : १. विष्णु पुराण द्वितीयांश, द्वितीय अध्याय, श्लोक, ५-९ मार्कण्डेय पुराण अ० ५४ श्लोक ५-७ विष्णु पुराण द्वितीयांश द्वितीय अ० श्लोक १०-१५ विष्णु पुराण द्वितीयांश चतुर्थ अ० श्लोक ९३-९६ २. ३. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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