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स्वतंत्रता का सुख पा नहीं सकते, वह है पराधीनता की वेदना । (७) ज्वर( ताव ) वेदना :
मनुष्य को अधिक से अधिक जितना बुखार (ज्वर) आता है उससे अनंतगुणा बुखार नरक के जीवों को होता है और वह वेदना समग्र जीवन पर्यंत निरंतर रहती है ।
(८) दाह वेदना :
नैरयिक के शरीर मे सदा दाह अर्थात् जलने की वेदना रहती है । ( ९ ) भय वेदना :
अवधिज्ञान अथवा विभंगज्ञान होने से उसकी शक्ति से आगामी भय के दु:खों को जानते है, उससे सदा भयभीत रहते हैं । उसके अलावा परमाधामी तथा अन्य नारको द्वारा होने वाली वेदना का भय भी सतत रहता ही है । (१०) शोक :
नारक के जीव हमेंशा दुःख और भय आदि के कारण से निरंतर शोकमग्न ही रहते हैं । जीवन में कदापि आनंद या खुशी का उसका स्पर्श भी नहीं होता । मनुष्य को तो सुख-दुःख दोनों जीवनभर में आते रहते है, पर नैरयिक को तो जन्म से मरण तक अनेक प्रकार के दुःख भोगना पडता हैं ।
इस प्रकार १० प्रकार की क्षेत्रजन्य वेदना का भोगी नारक होता है, जो कि असह्य होती है । परंतु उसे भोगे बिना छुटकारा नहीं होता । २. परस्पर उदीरित वेदना
नारक के जीवों को तीन प्रकार के दुःख होते हैं । जिस में क्षेत्रकृत वेदना का वर्णन पहले किया है । अब परस्पर उदीरित वेदना का स्वरूप देखेगें । ये दुःख क्षेत्रकृत वेदना से अधिक होता है ।
नारक के जीव एक दूसरे को आमने-सामने दुःख देते हैं, ये दुःख भी स्वाभाविक नहीं होता है पर उदीरणा करके दुःख देते हैं, इसलिए परस्पर उदीरित दुःखवाले जीव कहलाते हैं ।
इनकी उपमा का उल्लेख करते हुए कहा है कि जैसे चूहा -बिल्ली अथवा साप-नेवला ये जन्मजात वैरी है, उसी तरह नारक के जीव भी आजीवन शत्रु
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