Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 296
________________ २६९ में देवों और नारकों के वर्णन-विषयक महत्वहीन अपवादों की उपेक्षा करने पर मालूम होगा कि उसमें लेशमात्र भी विवाद दृग्गोचर नहीं होता । बौद्ध - साहित्य के पढ़ने वाले पग-पग पर यह अनुभव करते है कि बौद्धों में यह विद्या बाहर से आई है । बौद्धों के प्राचीन सूत्र-ग्रन्थों में देवों अथवा नारकों की संख्या में एकरूपता नही है । यही नहीं, देवो के अनेक प्रकार के नामों में वर्गीकरण तथा व्यवस्था का भी अभाव है, परन्तु अभिधम्म - काल में बौद्धधर्म में देवों और नारकों की सुव्यवस्था हुई थी । यह बात भी स्पष्ट है कि, प्रेतयोनि जैसी योनि की कल्पना बौद्ध-धर्म अथवा उसके सिद्धान्तों के अनुकूल नहीं है, फिर भी लौकिक व्यवहार के कारण उसे मान्यता प्राप्त हुई । ३८ वैदिक स्वर्ग-‍ -नरक इस लोक में जो मनुष्य शुभ कर्म करते हैं, वे मरकर स्वर्ग में यमलोक पहुँचते हैं । यह यमलोक प्रकाश-पुंज से व्याप्त है । वहाँ उन लोगों को अन्न और सोम पर्याप्त मात्रा में मिलता है एवं उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं । ९ कुछ व्यक्ति विष्णु अथवा वरूणलोक ४१ में जाते हैं । वरूणलोक सर्वोच्च स्वर्ग ४२ है । वरूणलोक में जानेवाले मनुष्य की सभी त्रुटियाँ दूर हो जाती है और वह वहां देवों के साथ मधु, सोम, अथवा घृत का पान करता है । ४३ वहाँ रहते हुए उसे अपने पुत्रादि द्वारा श्राद्ध-तर्पण में अर्पित पदार्थ भी मिल जाते हैं । यदि उसने स्वयं इष्टापूर्त (बावड़ी, कुंआ, तालाब आदि जलस्थान) किया हो, तो उसका फल भी उसे स्वर्ग में मिल जाता है | ४४ I वैदिक आर्य आशावादी, उत्साही और आनन्द - प्रिय लोग थे । उन्होंने जिस प्रकार के स्वर्ग की कल्पना की है, वह उनकी विचारधारा के अनुकूल ही है । यही कारण है कि, उन्होंने प्राचीन ऋगवेद में पापी आदमियों के लिए नरक जैसे स्थान की कल्पना नहीं की । दास तथा दस्यु जैसे लोगों को आर्य लोग अपना शत्रु समझते थे, उनके लिए भी उन्होंने नरक की कल्पना नहीं की, किन्तु देवों से यह प्रार्थना की है कि वे उनका सर्वथा नाश कर दें । मृत्यु के बाद उनकी क्या दशा होती है, इस विषय में उन्होंने कुछ भी विचार नहीं किया । ऐसी कल्पना है कि जो पुण्यशाली व्यक्ति मर कर स्वर्ग में जाते हैं, वे सदा के लिए वहीं रहते हैं । वैदिक काल में यह कल्पना नहीं की गई थी कि, पुण्य का क्षय होने पर वे पुनः मर्त्यलोक में वापिस आ जाते हैं । हाँ, बाह्मण Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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