Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 298
________________ २७१ वेदों में इस विषय में एक मत नहीं है कि भिन्न-भिन्न देव अनादिकाल से हैं या वे किसी समय उत्पन्न हुए हैं । प्राचीन कल्पना यह थी कि, वे धु और पृथ्वी की सन्तान हैं । उषा को देवताओं की माता कहा गया है, किन्तु वह बाद में स्वयं द्यु की पुत्री मानी ८ गई । अदिती और दक्ष को भी देवताओं के माता-पिता माना गया है ।४९ अन्यत्र सोम को अग्नि, सूर्य, इन्द्र, विष्णु, धु और पृथ्वी का जनक कहा गया है। कई देवताओं के परस्पर पिता-पुत्र के संबंध का भी वर्णन है । इस प्रकार ऋग्वेद में देवताओं की उत्पत्ति के संबंध में एक निश्चित मत उपलब्ध नहीं होता । सामान्यतः सभी देवों के विषय में ये उल्लेख मिलते हैं कि वे कभी उत्पन्न हुए । अतः हम कह सकते हैं कि वे न तो अनादि हैं और न स्वतः सिद्ध । ऋग्वेद में बार-बार उल्लेख किया गया है, कि देवता अमर हैं, परन्तु सभी देवता अमर हैं अथवा अमरता उनका स्वाभाविक धर्म है, यह बात स्वीकार नहीं की गई । वहाँ ये उल्लेख प्राप्त है कि, सोम का पान कर देवता अमर बनते हैं । यह भी कहा गया है कि, अग्नि और सविता देवताओं को अमरत्व अपित करते हैं । एक और देवताओं की उत्पत्ति में पूर्वापर-भाव का वर्णन किया गया है और दूसरी और यह लिखा गया है कि, देवों में कोई बालक अथवा कुमार नहीं, सभी समान हैं। यदि शक्ति की दृष्टि से विचार किया जाये तो देवों में दृष्टिगोचर होने वाले वैषम्य की सीमा नहीं है, किन्तु एक बात की सभी में समानता है, और वह है उनकी परोपकार वृत्ति । मगर यह वृत्ति आर्यों के लिए ही स्वीकार की गई है, दास या दस्युओं के विषय में नहीं । देवता यज्ञ करने वाले को सभी प्रकार की भौतिक सम्पत्ति देने में समर्थ हैं, वे समस्त विश्व के नियामक हैं और अच्छे व बुरे कामों पर दृष्टि रखने वाले हैं। किसी भी मनुष्य में यह शक्ति नहीं है कि वह देवताओं की आज्ञा का उल्लंघन कर सके । जब उनके नाम से यज्ञ किया जाता है, तब वे धुलोक से रथ पर चढ़कर चलते हैं और यज्ञ-भूमि में आकर बैठते हैं। अधिकांश देवों का निवास स्थान धुलोक है और वे वहाँ सामान्यतः मिल जुलकर रहते हैं । वे सोमरस पीते हैं और मनुष्यों जैसे आहार करते हैं । जो यज्ञ द्वारा उन्हें प्रसन्न करते हैं, वे उनकी सहानुभूति प्राप्त करते हैं । किन्तु जो व्यक्ति यज्ञ नहीं करते, वे उनके तिरस्कार के पात्र बनते हैं । देवता नीति-सम्पन्न हैं, सत्यशील हैं, वे धोखा नहीं देते । वे प्रामाणिक और चरित्रवान् मनुष्यों की रक्षा करते हैं, उदार और पुण्यशाली व्यक्तियों तथा उनके कृत्यों का बदला चुकाते Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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