Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 307
________________ २८० ९, ४३ और ४५ में भी उल्लेख हैं। मार्क ३, २९ के अनुसार जो पवित्रात्मा की निंदा करते हैं, उसे कभी भी माफी नहीं मिलेगी और वह हमेंशा नरकवासी होगा, ऐसा भय रहेगा । फिर भी जो ईशु ख्रिस्त का अनुयायी होगा तो वे उसे बचालेंगे, ऐसा अनेक स्थान पर उल्लेख है। इन सभी संदर्भो से यह भलीभांति ज्ञात होता है कि जो ईशु का अनुयायी है, उसे नरक गति में नहीं जाना पडेगा । जो उनका अनुयायी नहीं है, उनसे विमुख है, पापी है वही नरक में जाएगा । उनको प्रभु से दूर जावेदान के नरक में वास करना पडेगा । यहाँ ईसाई धर्म में स्वर्ग और नरक के विषय में उल्लेख तो प्राप्त होता है, तथा उसके कारणों पर भी प्रकाश पड़ता है, किन्तु स्वर्ग कहाँ है ? कैसा है ? वहाँ के लोग कैसे है ? कहाँ रहते हैं ? उनका शरीर आदि का वर्णन जैसे कि जैन मत में किया गया है, प्राप्त नहीं होता । तात्पर्य यहाँ यही है कि ईशु के कृपापात्र उनके अनुयायी स्वर्ग में तथा उनसे विमुख को नरक में जाना पड़ता है । स्वर्ग और नरक - जरथोश्ती धर्मानुसार __ अन्य धर्मों के समान पैगम्बर जरथुश्त्र भी यही स्वीकारते हैं कि-जैसी करणी-वैसी पार उतरनी । जैसा करोगे, वैसा भरोगे । हमम अपने आपको उच्च या निम्न दशा में ले जा सकते हैं । पैगम्बर जरथुश्त्र या कोई ईसाइ या कोई अमेशास्पंद भी पापी मनुष्य का तारणहार या बचा नहीं सकता है । यहाँ यह मत जैन मत से साम्य रखता है कि गति कोई भी प्राणी को कर्मानुसार मिलती है, उसमें कोई ईश्वर या पुरुषोत्तम सहायक नहीं हो सकता ।६८ । इस मत में उल्लेख है कि जब जीव इस संसार से विदा होता है, तब वंदीदाद और दाहोख्त नरक के अनुसार जो यदि नेक मनुष्य होगा तो खुशबुदार और दिलखुश वातावरण में वह जाएगा और एक परीसूरत रूपसुंदरी के उसे दर्शन होगें । पूछने पर पता चलेगा कि वह सुंदरी अन्य कोई नहीं, वह उस नेक मनुष्य का ही 'दअना' अथवा अन्तःकरण है । वह उसके सुकृत्य का जोड़ है, उसके द्वारा की गई 'अषोई' का दिलपसंद स्वरूप है । वह खुशदीदार की Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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