Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 301
________________ २७४ महाकायिक, अमर । ब्रह्मा के द्वितीय तपोलोक में तीन देव-निकाय हैं-आभास्वर, महाभास्वर, सत्यमहाभास्वर । ब्रह्मा के तृतीय सत्यलोक में चार देव-निकाय हैंअच्युत, शुद्ध निवास, सत्याभ, सज्ञासंज्ञी । इन सब देवलोकों में बसने वालों की आयु दीर्घ होते हुए भी परिमित है । कर्म-क्षय होने पर उन्हें नया जन्म धारण करना पड़ता है। पौराणिक नरक : नरक के विषय में पुराणकालीन वैदिक परंपरा में कुछ विशेष विवरण मिलते हैं। बौद्ध और जैन मत के साथ उनकी तुलना करने पर ज्ञात होता है कि यह विचारणा तीनों परम्पराओं में समान ही थी ।५७ योगदर्शन व्यास-भाष्य में सात नरकों के ये नाम बताए गए हैं-महाकाल, अम्बरीष, रौख, महारौरव, कालसूत्र, अन्धतामिरव, अवीचि । इन नरकों में जीवों को अपने किए हुए कर्मों के कटुफल मिलते हैं और वहाँ जीवों की आयु भी लम्बी८ होती है । अर्थात् दीर्घकाल तक कर्म का फल भोगने के बाद ही वहाँ से जीव का छुटकारा होता है, ऐसी मान्यता सिद्ध होती है । ये नरक हमारी अपनी भूमि और पाताल लोक के नीचे अवस्थित हैं । भाष्य की टीका में नरकों के अतिरिक्त कुम्भीपाकादि उपनरकों की कल्पना को भी स्थान प्राप्त हुआ है । वाचस्पति ने इनकी संख्या अनेक बताई है किन्तु भाष्यवार्तिककार ने इसे अनन्त कहा है । भागवत में नरकों की संख्या सात के स्थान पर ८ बताई है और उनमें प्रथम २१ के नाम ये हैं-तामिस्र, अन्धतामिस्त्र, रौरव, महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, सूकरमुख, अन्धकूप, कृमि-भोजन, संदेश, वज्रकण्टकशाल्मली, वैतरणी, पूयोद, प्राणरोध, विशसन, लालाभाक्ष, सारमेयादन, अवीचिन तथा अयःपान ।६० इसके अतिरिक्त कुछ लोगों के मतानुसार अन्य सात नरक भी हैं- क्षार-कर्दम, रक्षोगण-भोजन, शूलप्रोत, दन्दशूक, अवटनिरोधक, पर्योवर्तन और सूची सूचीमुख । इनमें अधिकतर नाम ऐसे हैं इससे यह ज्ञात हो जाता है कि उन नरकों में जीवों को किस प्रकार के कष्ट हैं । बौद्ध धर्म-परंपरा में स्वर्ग-नरक : भगवान् बुद्ध ने अपने धर्म को इसी लोक में फल देने वाला माना था और उनके उपलब्ध प्राचीन उपदेश में स्वर्ग, नरक संबंधी विचारों को स्थान ही Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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