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इस आनन्द से भी सौ-गुना और ब्रह्मलोक में उससे भी सौ-गुना अधिक आन्द होता है । ब्रह्मलोक का आनंद सर्वाधिक है ।५४ उपनिषदों में नरक :
ऋग्वेद-काल के आर्यों ने पापी पुरुषों के लिए नरक-स्थान की कल्पना नहीं की थी, किन्तु उपनिषदों में यह कल्पना विद्यमान है । नरक कहाँ हैं ? इस विषय में उपनिषद् 'मौन है, किन्तु उपनिषदों के अनुसार नरक लोक अन्धकार से आवृत्त है, उसमें आनन्द का नाम भी नहीं है । इस संसार में अविद्या के उपासक मरणोपरान्त नरक को प्राप्त होते हैं। आत्मघाती पुरुषों के लिए भी यही स्थान है और अविद्वान् की भी मृत्युपरान्त यही दशा है । बूढी गाय का दान देने वालों की भी यही गति होती है । यही कारण है कि नचिकेता जैसे पुत्र को अपने उस पिता के भविष्य के विचार ने अत्यन्त दुःखी किया जो बूढी गायों का दान कर रहा था । उसने सोचा कि, मेरे पिता इनके बदले मुझे ही दान में क्यों५ नहीं दे देते ?
उपनिषदों में इस विषय में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि, ऐसे अन्धकारमय लोक में जाने वाले जीव सदा के लिए वहीं रहते हैं अथवा वहाँ से उनका छुटकारा भी हो जाता है । पौराणिक स्वर्ग :
वैदिक मान्यतानुसार तीनों लोकों में देवों का निवास है। पौराणिक-काल में भी इसी मत का समर्थन किया गया । योगदर्शन के व्यास-भाष्य६ में उल्लेख है कि, पाताल, जलधि(समुद्र) तथा पर्वतों में असुर, गन्धर्व, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, अपस्मारक, अप्सरस्, ब्रह्मराक्षस, कुष्माण्ड, विनायक नाम के देव-निकाय निवास करते हैं । भूलोक के समस्त द्वीपों में भी पुण्यात्मा देवों का निवास है। सुमेरू पर्वत पर देवों की उद्यान भूमियाँ हैं, सुधर्मा नामक देवसभा है, सुदर्शन नामा नगरी है और उसमें वैजयन्त प्रासाद है । अन्तरिक्ष लोक के देवों में ग्रह, नक्षत्र और तारों का समावेश है । स्वर्ग लोक में महेन्द्र में छह देव-निकायों का निवास है-त्रिदश, अग्निष्वात्ता, याम्या, तुषित, अपरिनिर्मितवशवर्ती, परिनिर्मितवशवर्ती । इससे ऊपर महति लोक अथवा प्रजापति लोक में पाँच देव-निकाय हैं-कुमुद, ऋभु, प्रतर्दन, अंजनाभ, प्रचिताभ । ब्रह्मा के प्रथम जनलोक में चार देव निकाय हैं- ब्रह्म-पुरोहित, ब्रह्म-कायिक, ब्रह्म
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