Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ २६५ वज्रपाणी देवों का निवास है ।२७ त्रायास्त्रिशलोक के मध्य में सुदर्शन नाम का नगर है, जो सुवर्णमय है । इसका एक-एक पार्श्व भाग ढाई हजार योजन विस्तृत है । उसके मध्य-भाग में इन्द्र का अढाई सौ योजन विस्तृत वैजयन्त नामक प्रासाद है । नगर के बाहरी भाग में चारों और चैत्ररथ, पारूष्य, मिश्र और नन्दन ये चार वन है ।२८ इनके चारों ओर बीस हजार योजन के अन्तर से देवों के क्रीडास्थल हैं ।२९ त्रयस्त्रिंश-लोक के ऊपर विमानों में याम, तुषित, निर्माणरति, और परनिर्मित-वशवर्ती देव रहते हैं । कामधातुगत देवों में से चातुर्माहाराजक और त्रयास्त्रिंश देव मनुष्य के समान कामसेवन करते हैं । याम, तुषित, निर्माणरति, परिनिर्मितवशवर्ती देव क्रमशः आलिंगन, पाणिसंयोग, हसित और अवलोकन से ही तुप्ति को प्राप्त होते हैं ।३० कामधातु के ऊपर सतरह स्थानों से संयुक्त रूपधातु हैं । वे सतरह स्थान इस प्रकार हैं । प्रथम स्थान में ब्रह्मकायिक, ब्रह्म-पुरोहित, और महाब्रह्म लोक हैं । द्वितीय स्थान में परिताभ, अप्रभाणाभ, और आभस्वर लोक हैं । तृतीय स्थान में परित्तशुभ, अप्रमाणशुभ और शुभकृत्स्न लोक हैं । चतुर्थ स्थान में अनभ्रक, पुण्यप्रसव, बृहद्फल, पंचशुद्धावासिक, अवृह, अतप, सुदृश-सुदर्शन और अकनिष्ठ नाम वाले आठ लोक हैं । ये सभी देवलोक क्रमशः ऊपर-ऊपर अवस्थित हैं। इनमें रहने वाले देव ऋद्धि-बल अथवा अन्य देव की सहायता से ही अपने से ऊपर के देव-लोक को देख सकते हैं ।३९ जम्बूद्वीपस्थ मनुष्यों का शरीर साढ़े तीन या चार हाथ पूर्व विदेहवासियों का ७-८ हाथ, गोदानीय द्वीपवासियों का १४-१६ हाथ और उत्तर-कुरुस्थ मनुष्यों का शरीर २८, ३२ हाथ ऊँचा होता है । कामधातुवासी देवों में चातुर्महाराजिक देवों का शरीर १५ कोश, त्रायस्त्रिंशों का १८, कोश यामों का ३१४ कोश, तुषितों का १ कोश, निर्माणरति देवों का १५, कोश और परनिर्मितवशवर्ती देवों का शरीर १/२ कोश ऊँचा है। आगे ब्रह्मपुरोहित, महाब्रह्म, परिताभ, अप्रभाणाभ, आभस्वर, परित्तशुभ, अप्रमाणशुभ और शुभकृतस्न देवों का शरीर क्रमशः १, ११, २, ४, ८, १६, ३२ और ६४ योजन प्रमाण ऊँचा है । अनभ्र देवों का शरीर १२५ योजन ऊँचा है । अनभ्र देवों के शरीर उत्तरोत्तर दूनी ऊँचाई वाले हैं ।३२ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324