Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 284
________________ २५७ स्थावर कृमि, जलचर, मनुष्य और देव आदि होते हैं । जितने जीव स्वर्ग में हैं उतने ही जीव नरकों में भी रहते हैं ।" ज्योतिलोक I भूमि से १ लाख योजन दूरी पर सौरर - मण्डल है । इससे १ लाख योजन ऊपर चन्द्रमण्डल, इससे १ लाख योजन ऊपर नक्षत्र - मण्डल, इससे २ लाख योजन ऊपर बुध, इससे २ लाख योजन ऊपर शुक्र, इससे २ लाख योजन ऊपर मंगल, इससे २ लाख योजन ऊपर बृहस्पति, इससे २ लाख योजन ऊपर शनि, इससे १ लाख योजन ऊपर सप्तर्षिमण्डल तथा इससे १ लाख योजन ऊपर ध्रुवतारा स्थित है | महर्लोक (स्वर्गलोक ) ध्रुव से १ करोड़ योजन ऊपर जाकर महर्लोक है, यहाँ कल्प काल तक जीवित रहने वाले कल्पवासियों का निवास है । इससे २ करोड़ योजन ऊपर जनलोक है, यहां नन्दनादि से सहित ब्रह्माजी के प्रसिद्ध पुत्र रहते हैं । इससे ८ करोड़ योजन ऊपर तपलोक है । यहाँ वैराज देव निवास करते हैं । इससे १२ करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है । यहाँ कभी न मरने वाले अमर ( अपुनमरिक) रहते हैं । इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं । भूमि ( भूलोक ) और सूर्य के मध्य में सिद्धजनों और मुनिजनों में सेवित भुवर्लोक कहलाता है। सूर्य और ध्रुव के मध्य चौदह लाख योजन प्रमाण क्षेत्र स्वर्लोक नाम से प्रसिद्ध है ।" भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक, ये तीनों लोक कृतक, तथा जनलोक, तपलोक, और सत्यलोक, ये तीन लोक अकृतक है । इन दोनों लोकों के बीच मे महर्लोक है । यह कल्पांत में जन-शून्य हो जाता है, किन्तु सर्वथा नष्ट नहीं होता । " I तुलना और समीक्षा विष्णु पुराण के आधार पर जो लोक स्थिति या भूगोल का वर्णन किया गया है उसका हम जैनसम्मत लोक के वर्णन से मिलान करते हैं तो अनेक तथ्य सामने आते हैं। जिनका दोनों मान्यताओं के नाम निर्देश के साथ यहाँ उल्लेख किया जाता हैं Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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