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पर्वत
२५९
जैन परम्परा
वैदिक परम्परा
१. हिमवान
हिमवान्
२. महाहिमवान
हेमकूट
३. निषध
निषध
४. नील
नील
५. रूक्मी
श्वेत
६. शिखरी
श्रृंगी
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि शिखरी एवं श्रृंगी ये दोनों एकार्थक नाम हैं । पाँचवें रूक्मी पर्वत का वर्ण जैन मान्यतानुसार श्वेत ही माना गया है, जो वैदिक मान्यता के श्वेत-पर्वत का ही बोधक है । केवल महाहिमवान के स्थान पर हेमकूट नाम नवीन है ।
जैन और वैदिक दोनों ही मान्यताओं के अनुसार मेरू पर्वत जम्बूद्वीप के मध्य भाग में स्थित है । अन्तर केवल ऊँचाई का है । वैदिक मान्यता के अनुसार मेरू चौरासी हजार योजन ऊँचा है । जबकि जैन मान्यता इसे १ लाख योजन ऊँचा मानती है ।
नदियाँ
वैदिक मान्यतानुसार ऊपर जो नदियों के नाम दिये गये हैं वे प्रायः सब आधुनिक नदियों के नाम हैं। जैन मान्यतानुसार जम्बू द्वीप के सात क्षेत्रों में १४ प्रधान नदियाँ हैं । उनमें नाम इस प्रकार हैं- गंगा, सिंधु, रोहित - रोहितास्या, हरित - हरिकान्ता, सीता - सीतोदा, नारी - नारीकान्ता, स्वर्णकूला - रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा । भारत वर्ष आदि क्षेत्रों में क्रमशः उक्त दो नदियाँ बहती हैं। उनमें से पहली नदी पूर्व के समुद्र और दूसरी नदी पश्चिम के समुद्र में जाकर मिलती है। इस प्रकार दोनों ही मान्यताओं वाली नदियों के नामों में कोई समानता नहीं है ।
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नरक -स्थिति
जैन मान्यता के समान ही वैदिक मान्यता में भी अत्यन्त दुःख भोगने वाले नारकी - जीवों का अवस्थान इस धरातल के नीचे माना गया है । दोनों के कुछ
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