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नामों में समानता है, और कुछ नामों में विषमता है ।
ज्योतिर्लोक
जैन मान्यतानुसार सम - भूमितल से सूर्य-चंद्र आदि की ऊँचाई का जो उल्लेख है उससे वैदिक मान्यता में बहुत भारी अन्तर है । जो दोनों के पूर्व वर्णनों से हम जान सकते है ।
स्वर्गलोक
दोनों ही मान्यताओं के अनुसार स्वर्गलोक की स्थिति ज्योतिर्लोक के ऊपर मानी गई है। वैदिक मान्यता में स्वर्गलोक का नाम महर्लोक दिया गया है तथा वहाँ के निवासियों को जैन मान्यता के समान कल्पवासी कहा गया है । वैदिक मान्यता में स्वर्गलोक की स्थिति सूर्य और ध्रुव के मध्य में चौदह लाख योजन प्रमाण क्षेत्र में है । जबकि जैन मान्यता से वह सुमेरू के ऊपर से लेकर असंख्यात योजन ऊपरी क्षेत्र तक बतलाई गई है ।
कर्मभूमि और भोगभूमि
जिस प्रकार जैनागमों में कर्मभूमि और भोगभूमि का वर्णन आया है उसी प्रकार हिन्दू-पूराणों में भी मिलता है, विष्णु पुराण के द्वितीयांश के तीसरे अध्याय में कर्मभूमि का वर्णन निम्न प्रकार मिलता है :
उत्तरं यत्समुद्रस्यः हिमाद्रेश्च दक्षिणम् ।
वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र संततिः ॥ १ ॥ नवयोजनसाहस्त्रो विस्तारोऽस्य महामुने । कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्गञ्च गच्छताम् ॥२॥ अतः सम्प्राप्यतेस्वर्गो मुक्तिमस्मात् प्रयान्ति वै । तिर्यक्त्वं नरकं चापि यान्त्यतः पुरुषा मुने || ३ || इतः स्वर्गश्च मोक्षश्च, मध्यं चान्तश्च गम्यते त खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥४॥
भावार्थ :- समुद्र के उत्तर और हिमादि के दक्षिण में भारतवर्ष अवस्थित है । इसका विस्तार नौ हजार योजन विस्तृत है । यह स्वर्ग और मोक्ष जाने वाले पुरुषों की कर्मभूमि है । इसी स्थान से यतः मनुष्य स्वर्ग और मुक्ति प्राप्त करते
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