Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 263
________________ २४० कुशलानुबंधी नहीं होता। उनका विशिष्ट पुण्य का बंध भी नहीं होता कि जिसके उदय से वे जीव अशुभक्रिया से निवृत्त और शुभ क्रिया में प्रवृत्त हो सके । इन सब कारणों से इन देवों को अन्य मनोज्ञ विषय सामग्री उपलब्ध होने पर भी इनकी अशुभ विषयों में ही प्रीति रहती है । ६ भयंकर वेदना के बाद मृत्यु क्यों नहीं :- परमाधामी कृत इतनी भयंकर और जीव लेण ऐसी वेदना होते हुए भी इन नारकियों की मृत्यु क्यों नहीं होती ? इसका समाधान किया गया है कि उपपात से जन्मलेनेवाले इन देवों और नारकियों का आयुष्य अनपवर्तनीय कहा गया है । नारकजीव दुःखो से भयभीत होकर मरने की इच्छा तो करते हैं । पर उनके आयुष्य का अपवर्तन न होने से जब तक उनकी बांधी हुई आयुस्थिति का क्षय नहीं होता, तब तक उनका मरण भी नहीं हो सकता । उनका दूसरा कोई शरणभूत भी नहीं हो सकता । इससे सम्पूर्ण जीवन तक उनकों ये दुःख, कर्म अवश्य भोगने ही पड़ते हैं । परिणाम स्वरूप उनका शरीर यंत्र पीडनादि दुःखो या उपघातों से अपहृत हो पर जलाये जाने पर उपर से नीचे डालने पर, विदीर्ण होने पर, छेदा-भेदा पर, था-नहीं था ऐसा कर डालने पर भी है, फिर से जैसा था वैसा ही हो जाता जिस प्रकार पारे के बिखरे हुए दाने पुनः एकत्रित हो जाते हैं, अथवा पानी में कदाच लकडी से रेखा खींची जाय तो उसी समय वह मिल जाता है। उसी प्रकार नारकियों का शरीर भी छिन-भिन्न करने पर उसी समय अपने आप मिल जाता है । इस प्रकार से नरक में नारकियों की तीन प्रकार की वेदना होती हैं । ८. परमाधामियों द्वारा दी जाने वाली यातनाएँ - नारकीय जीवों की वेदना तीन प्रकार से उदीर्ण होती है-स्वतः, परतः, और उभयतः । उभयतः उदीर्ण होनेवाली वेदना नारकों को नरकपालों द्वारी दी जाती नहीं है । ये यातनाएँ मुख्यतया इस प्रकार है(१) उनके हाथ-पैर बांधकर तेज धार वाले उस्तरे व तलवार से पेट काटते है । (२) घायल शरीर को पकड़ कर उसकी पीठ की चमड़ी उधेड़ते है । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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