________________
२४३
से बचने का कोई उपाय नही होता अज्ञान के कारण वे समभाव पूर्वक उन दुःखो को सहन कर सकते हैं, और न ही उन दुःखों का अंत करने के लिए वे आत्महत्या करके मर सकते हैं, क्योंकि नारकीय जीवों का आयुष्य निरुपक्रमी होता हैं । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती । वे संपूर्ण आयुष्य भोगकर ही मरते हैं, बीच में नहीं । यही कारण है कि वे इतने-इतने भयंकर दारूण दुःखो और यातनाओं के सहन करके में समर्थ, अथवा यों कहे कि इतनी-इतनी बार मारे, काटे पीटे, ओर अंग-भंग किये जाने पर मरना चाहते हुए भी नहीं मर सकते । रोने-धोने, करुण-क्रन्दन, विलाप, चीत्कार या पुकार करने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं। पर उनकी करूण पुकार, प्रार्थना, विलाप या रुदन सुनकर कोई भी उनकी सहायता या रक्षा करने नहीं आता । न ही कोई सहानुभूति के दो शब्द कहता है । किसी को उनकी दयनीय दशा देखकर दया नहीं आती, पर परमाधामक असुर उन्हें रोने पीटने पर और अधिक क्रूर बनकर अधिकाधिक यातनाएं देते हैं । उनके पूर्व जन्मकृत पापकर्मों की याद दिलाकर उन्हें लगातार एक के बाद एक यातनाएँ देते रहते हैं, जो उन्हें विवश होकर भोगनी ही पड़ती
__ नरकपालों द्वारा नारक जीवों पर किये जाने वाले अत्याचारों से एक प्रश्न उठता है कि नरक में नारकी जीव का शरीर चूर-चूर कर दिया जाता है, उनकी चमड़ी उधेड़ दी जाती है, मृत शरीर की तरह उन्हे उंधे मुंह लटका दिया जाता है, वे अत्यन्त पिसे, काटे, पीटे, और छीले जाते हैं, फिर भी वे मरते क्यों नहीं ?
इसका समाधान आगमों में किया है कि- 'सजीवणा नाम चिरट्ठितिया' ।९२
अर्थात् नरक की भूमि का नाम संजीवनी भी है। वह संजीवनी औषधि के समान जीवन देने वाली है, जिसका रहस्य यह है कि मृत्यु-सा दुःख आने पर भी आयुष्यबल शेष होने के कारण वहा नारक चूर-चूर दिये जाने या पानी की तरह शरीर को पिघाल दिये जाने पर भी मरते नहीं, क्योंकि नारक का शरीर पारे के समान बिखर कर पुनः मिल जाता है ।२३
९. नारकों के मन पर प्रतिक्रिया :-९४ नारकीय जीवों को मिलने वाली ये सब यातनाएँ मुख्यतया शारीरिक होती
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org