Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 274
________________ २४७ उपर्युक्त पंच महापुरुष और ऐसे ही अन्य अत्यन्त क्रूरकर्मा प्राणी सर्वोत्कृष्ट पाप कर्म का उपार्जन करके वहाँ उत्पन्न हुए और अशुभ वर्ण-गंध-स्पर्शादिक की उज्जवल, विपुल और दुःसह्य वेदना को भोग रहे हैं ।९९ १२. नारकों को पुद्गलपरिणाम का अनुभव :जो नरवृषभ वासुदेव-जो बाह्य भौतिक दृष्टि से बहुत महिमा वाले, बल वाले, समृद्धि वाले, कामभोगादि में अत्यन्त आसक्त होते हैं, वे बहुत युद्ध आदि संहाररूप प्रवृत्तियों में तथा परिग्रह एवं भोगादि में आसक्त होने के कारण प्रायः यहा सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । इसी तरह तन्दुलमत्स्य जैसे भावहिंसा और क्रूर अध्यवसाय वाले, वसु आदि माण्डलिक राजा तथा सुभूम जैसे चक्रवर्ती तथा महारम्भ करने वाले कालसौकरिक सरीरवे गृहस्थ प्रायः इस सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न हुए हैं ।१०० ऐसा उल्लेख किया गया है । नारकों की उत्कृष्ट विकुर्वणा अन्तर्मुहूर्त काल तक रहती है । तिर्यंच और मनुष्यों की विकुर्वणा उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त रहती है तथा देवों की विकुर्वणा उत्कृष्ट पन्द्रह दिन (अर्धमास) तक रहती है ।०९ ___ जो अनिष्ट पुदगल होते हैं, वे ही नैरयिकों के द्वारा आहारादि रूप में ग्रहण किये जाते हैं । उनके शरीर का संस्थान हुंडक होता है और वह भी निकृष्टतम होता है । यह भवधारणीय को लेकर है। सब नैरयिकों की विकुर्वणा अशुभ ही होती है । यद्यपि वे अच्छी विक्रिया करने का विचार करते हैं, तथापि प्रतिकूल कर्मोदय से उनकी वह विकुर्वणा निश्चित अशुभ ही होती है । उनका उत्तर-वैक्रिय शरीर और उपलक्षण से भवधारणीय शरीर संहनन रहित होता हैं, क्योंकि उनमें हड्डियों का ही अभाव है। उनका उत्तरवैकिय शरीर भी हुंडकसंस्थान वाला है, क्योंकि उनके भवप्रत्यय से ही हुण्डक संस्थान नामकर्म का उदय होता है ।०२ रत्नप्रभादि सब नरकभूमियों में कोई जीव चाहे वह जघन्यस्थिति का हो या उत्कृष्ट-स्थिति का हो, जन्म के समय भी असाता का ही वेदन करता है । पहले के भव में मरणकाल में अनुभव किये हुए महादुःखों की अनुवृत्ति होने के कारण वह जन्म से ही असाता का वेदन करता है, उत्पत्ति के पश्चात् भी असाता का ही अनुभव करता है, इतना ही नहीं संपूर्ण नारक का भव असाता Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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