Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust
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९०. सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १३५ से १३९. ९१. (क) सूत्रकृतांग मूलपाठ टिप्पण (जम्बूविजयदी) पृ. ५८ से ६२
(ख) सूत्रकृतांग शीलांग वृत्ति पत्रांक १३७ (घ) 'औपपातिक चरमदेहोत्तमपुरूषाऽसंख्येय वर्षाऽऽयुषोऽनववर्त्यायुषः' तत्त्वार्थसूत्र
अ० १ सूत्र ५३. ९२. सूत्रकृतांग श्रु. १ सू० मा० ३५५ ९३. (क) 'संजीवणा-संजीवन्तीति संजीविनः सर्व एव नरकाः संजीवणा ।' सूत्रकृ०
चूर्णि (मू० पा० टि०) पृ० ५९
(ख) 'संजीवनी-जीवनदात्री नरकभूमि'-सूत्रकृ० शीलांक वृत्ति पत्रांक १३७. ९४. सूत्रकृतांग श्रु० ९ सू० गा० ३३५. ९५. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २४३. ९६. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २४३. ९७. 'प्रश्व्याकरण' अमर मुनिजी महाराज पृ. १०२. ९८. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २४५. ९९. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २४५. १००. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २६१. १०१. वही १०२. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २६१. १०३. वही १०४. 'नेड्याणुप्पाओ गाउय उक्नोस पंचजोयणसयाइ' इति वचित् पाठः । १०५. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २६१ १०६. वही १०७. वही १०८. वही १०९. जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. २६२.
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