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है तथा बाकी पार्श्ववर्ती प्रासाद अपने-अपने से पूर्व के प्रासादों की अपेक्षा ऊँचाई और चौड़ाई में उत्तरोत्तर आधे आधे हैं । मूल प्रासादावतंसक की अपेक्षा उत्तरवर्ती अन्यअन्य प्रासाद शिखर से लेकर तलहटी तक पर्वत के आकार के समान क्रमशः अर्ध, चतुर्थ और अष्ट भाग प्रमाण ऊँचे और चौड़े है ।
भगवान् की सेवा में देवों का आगमन : असुरकुमार देव
श्रमण भगवान् महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भूत-प्रकट हुए । उनका वर्णन औपपातिक सूत्र में प्राप्त है । महानीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उनका काला वर्ण तथा दीप्ति थी । उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे । नेत्रों की भौंहैं (सुक्ष्म रोममय तथा) निर्मल थीं । उनके नेत्रों का वर्ण कुछ-कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था । उनकी नासिकाएँ गरूड के सदृश, लम्बी, सीधी तथा उन्नत थीं । उनके होठ परिपुष्ट मूंगे एवं बिम्ब फल के समान लाल थे । उनकी दन्तपंक्तियाँ स्वच्छनिर्मल-कलंक शून्य चन्द्रमा के टुकडों जैसी उज्जवल तथा शंख, गाय के दुध के झाग, जलकण एवं कमलनाल के सदृश धवल-श्वेत थीं । उनकी हथेलियाँ, पैरों के तलवे, तालु तथा जिह्वा-अग्नि में गर्म किये हुए धोये हुए पुनः तपाये हुए शोधित किये हुए निर्मल स्वर्ण के समान लालिमा लिये हुए थे । उनके केश काजल तथा मेघ के सदृश काले तथा रूचक मणि के समान रमणीय और स्निग्ध-चिकने, मुलायम थे । उनके बायें कानों में एक-एक कुण्डल था । (दाहिने कानों में अन्य आभरण थे) । उनके शरीर आर्द्र-गीले-घिसकर पीठी बनाये हुए चन्दन से लिप्त थे । उन्होंने सिलींध्र-पुष्प जैसे कुछ-कुछ श्वेत या लालिम लिये हुए श्वेत, सुक्ष्म-महीन, असंक्लिष्ट-निर्दोष या ढीले वस्त्र सुंदर रूप में पहन रखे थे । वे प्रथम वय-बाल्यावस्था को पार कर चुके थे, मध्यम वय-परिपक्व युवावस्था नहीं प्राप्त किये हुए थे, भद्र यौवन-भोली जवानी-किशोरावस्था में विद्यमान थे । उनकी भुजाएँ तलभंगको-बाहुओं के आभरणों, त्रुटिकाओंबाहुरक्षिकाओं या तोडों, अन्यान्य उत्तम आभूषणों तथा निर्मल-उज्जवल रत्नों, मणियों से सुशोभित थीं । उनके हाथों की दशों अंगुलियाँ अंगूठियों से मंडितअलंकृत थीं । उनके मुकुटों पर चूडामणि के रूप में विशेष चिह्न थे । वे सुरूप-सुन्दर रूपयुक्त, परम ऋद्धिशाली परम द्युतिमान, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे । उनके वक्षःस्थलों पर हार
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