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से दुर्गन्ध फूट रही हो, जिसका मांस सड़-गल गया हो, जो अत्यन्त अशुचिरूप होने से कोई उसके पास फटकना तक न चाहे ऐसा घृणोत्पादक और बीभत्सदर्शन वाला और जिसमें कीडे बिलबिला रहे हों ऐसे मृत कलेवर हैं। इससे अधिक अनिष्टतर, अकांततर, अमनोज्ञ इन नरकावासों की गन्ध आती है । इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक इसी प्रकार की एवं इससे भी बढ़कर भयंकर दुर्गन्ध युक्त नरकावास होते हैं ।
स्पर्श :- नरकावासों का स्पर्श जैसे तलवार की धार का, उस्तरे की धारका कदम्बचीरिका (तृणविशेष जो बहुत तीक्ष्ण होता है) के अग्रभाग का, शक्ति (शस्त्रविशेष) के अग्रभाग का, भाले के अग्रभाग का, तोमर के अग्रभाग का, बाण के अग्रभाग का, शूल के अग्रभाग का, लगुड, भिण्डीपाल का, सुईयों के समूह का, कपिकच्छु(खुजली पैदा करने वाली, वल्ली) बिच्छू के डंक, अंगारें का, ज्वाला का, मुर्मुर (भोभर की अग्नि) अचि का अलात (जलती लकड़ी) का, शुद्धाग्नि का, लोह पिण्ड की अग्नि का-इन सबके अग्रभाग के जैसा स्पर्श होता है, इनसे भी अधिक अनिष्टतर अमणाम उनका स्पर्श होता है ।५४ इसी तरह सभी पृथ्वीओं का स्पर्श होता है।
यहाँ सभी नरक पृथ्वियों के अमनोज्ञ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के स्वरूप का दिग्दर्शन किया गया है । सार यह है कि नरक एक ऐसा स्थान है, जहाँ सर्वत्र कष्ट ही कष्ट भोगना पड़ता है । जीव को कहीं भी, किसी भी प्रकार का सुख क्षणमात्र को नहीं मिलता । ४. नरकावासों की संख्या
सातों नरकपृथ्वी में नरकावासों की संख्या निम्न तालिका के अनुसार है
पृथ्वी का नाम आवलिका प्रविष्ट पुष्पावकीर्णक कुल नरकावास
नरकावास नरकावास रत्नप्रभा
४४३३
२९९५५६७ ३०००००० शर्कराप्रभा
२६९५
२४९७३०५ २५००००० बालुकाप्रभा
१४८५
१४९८५१५ १५००००० पंकप्रभा
७०७
९९९२९३ १००००००
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