________________
२२१ मिलाकर पच्चीस लाख नरकावास दूसरी शर्करप्रभा में हैं ।६९
(३) तीसरी बालुकाप्रभा में नौ प्रस्तर हैं । पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में २५-२५, विदिशा में २४-२४ और मध्य में एक नरकेन्द्रक-कुल मिलाकर १९७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष आठ प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि है, सब मिलाकर १४८५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष १४९८५१५ पुष्कावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलाकर पन्द्रह लाख नरकावास तीसरी पृथ्वी में हैं ।६२
(४) चौथी पंकप्रभा में सात प्रस्तर हैं । पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में १६-१६ आवलिका-प्रविष्ट नरकावास हैं और विदिशा में १५-१५ हैं, मध्य में एक नरकेन्द्रक है। सब मिलकर १२५ नरकावास हुए । शेष छह प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि है अतः सब मिलाकर ७०७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास है-शेष ९९९२९३ (नौ लाख निन्यानवै हजार दो सौ तिरानवे) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं । दोनों मिलाकर दस लाख नरकावास पंकप्रभा में हैं ।६३
(५) पाँचवीं धूमप्रभा में ५ प्रस्तर हैं । पहले प्रस्तर में एक-एक दिशा में नौ नौ आवलिका-प्रविष्ट आवास हैं और विदिशाओं में आठ-आठ हैं । मध्य में एक नरकेन्द्रक है। सब मिलाकर ६९ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष चार प्रस्तरों में पूर्ववत् आठ-आठ की हानि है । अतः सब मिलाकर २६५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष २९९७३५ (दो लाख निन्यानवे हजार सात सौ पैंतीस) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं । दोनों मिलाकर तीन लाख नरकावास पाँचवी पृथ्वी में है ।६४
(६) छठी तमःप्रभा में तीन प्रस्तर हैं । प्रथम प्रस्तर की प्रत्येक दिशा में चार-चार और प्रत्येक विदिशा में ३-३, मध्य में एक नरकेन्द्रक सब मिलाकर २९ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष दो प्रस्तरों में कम से आठ-आठ की हानि है । अतः सब मिलाकर ६३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष ९९९३२ (निन्यानवे हजार नौ सौ बत्तीस) पुष्पावकीर्णक हैं । दोनों मिलाकर छठी पृथ्वी में ९९९९५ नरकावास हैं ।६५
(७) सातवीं पृथ्वी में केवल पांच नरकावास हैं । काल, महाकाल, रौरव, महरौरव औ अप्रतिष्ठान उनके नाम है । अप्रतिष्ठान नामक नरकावास मध्य में है और उसके पूर्व में काल नरकावास, पश्चिम में महाकाल, दक्षिणमें गैरव और उत्तर
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org