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में महारैरव नरकावास हैं ।६६
९. अपान्तराल और बाहल्य मोटाई का यन्त्र पृथ्वी का नाम अपान्तराल का घनोदधिवलय घनवातवलय तनुवातवलय मोटाई का प्रमाण
का बाहल्य का बाहल्य का बाहल्य प्रमाण १) रत्नप्रभा बारह योजन ६ योजन ४११ योजन ६ कोस एक लाख अस्सी
हजार योजन २) शर्कराप्रभा त्रिभाग कम त्रिभागसहित कोस कम 1, कोस एक लाख बत्तीस १३ योजन ६ योजन ५ योजन
हजार योजन ३) बालुकाप्रभा १३ योजन त्रिभागन्यून ५ योजन त्रिभागन्यून एक लाख अट्ठाईस
७ योजन
७ कोस हजार योजन ४) पंकप्रभा १४ योजन ७ योजन १ कोस ५ ७ कोस एक लाख वीस
योजन
हजार योजन ५) धूमप्रभा त्रिभागन्यून विभागसहित ५११ योजन ७ कोस एक लाख अठारह १५ योजन ७ योजन
हजार योजन ६) तमःप्रभा १५ योजन त्रिभागन्यून कोस कम त्रिभागन्यून एक लाख सोलह
८ योजन ६ योजन ८ कोस हजार योजन ७) स्तमःप्रभा १६ योजन ८ योजन ६ योजन ८ कोस एक लाख आठ
हजार योजन रत्नप्रभापृथ्वी आदि सात पृथ्वी का बाहल्य वाले प्रस्तरादि विभाग के अन्तर्गत घनोदधिवलय आदि तीन वलय में वर्ण से काले आदि द्रव्य हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी का आकार वर्तुल और वलयाकार कहा गया हैं, क्योंकि वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी को चारों और से घेरकर रहा हुआ है । इसी प्रकार सातों पृथ्वियों का ऐसा ही है । रत्नप्रभा पृथ्वी असंख्यात हजार लम्बी और चौड़ी तथा असंख्यात हजार योजन की परिधि (घेराव) वाली है । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक है । रत्नप्रभा पृथ्वी अन्त में, मध्य में, सर्वत्र समान बाहल्य वाली कही गई है। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक बाहल्य है ।
१०. पृथ्वियों का विभागवार अन्तर रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमांत से, नीचे के चरमान्त के बीच में एक लाख अस्सी हजार योजन का अन्तर है। इसी के ऊपर के चरमान्त से खरकांड के नीचे के चरमान्त के बीच सोल हजार योजन का अन्तर है। ऊपर के चरमान्त से रत्नकांड के नीचे के चरमान्त के बीच एक हजार योजन का अन्तर है ।
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