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अखण्डित, प्रवर-उत्तम पोशाक पहने हुए थे । वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं अनुलेपन-चंदन, केसर आदि के विलेपन से युक्त थे । उनके शरीर देदीप्यमान थे । वनमालाएँ-सभी ऋतुओं में विकसित होने वाले फूलों से बनी मालाएँ, उनके गलों से घुटनों तक लटकती थीं । उन्होंने दिव्य-देवोचित वर्ण, गंध, रूप, स्पर्श, संघात-दैहिक गठन, संस्थान-दैहिक आकृति, ऋद्धि-विमान, वस्त्र, आभूषण आदि दैविक समृद्धि द्युति-आभा अथवा युक्ति-इष्ट परिवारादि योग, प्रभा, कान्ति, अचिदीप्ति, तेज, लेश्या-आत्मपरिणति-तदनुरूप भामण्डल से दशों दिशाओं को उद्योतित-प्रकाशयुक्त, प्रभासित-प्रभा या शोभायुक्त करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप आ-आकर अनुरागपुर्वक-भक्ति सहित वन्दन-नमस्कार किया ।
व्यन्तर देवों का आगमन भगवान महावीर के समीप, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरूष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व-नाट्यपेत गान, गीत-नाट्यवर्जित गेय-विशुद्ध संगीत में अनुरक्त गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, कन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत या पतग-ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए ।
वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहास प्रिय थे । उन्हें गंभीर हास्य-अट्टहास तथा वैसी ही वाणी प्रिय थी। वे वैक्रिय लब्धि द्वारा अपनी इच्छानुसार विरचित वनमाला, फूलों का सेहरा या कलगी, मुकुट, कुण्डल आदि आभुषणों द्वारा सुन्दररूप में सजे हुए थे । सब ऋतुओं में खिलने वाले, सुगंधित पुष्पों से सुरचित, लम्बी-घुटनों तक लटकती हुई, शोभित होती हुई, सुन्दर विकसित वनमालाओं द्वारा उनके वक्षःस्थल बड़े आलादकारी-मनोज्ञ या सुंदर प्रतीत होते थे । वे कामगम-इच्छानुसार जहाँ कहीं जाने का सामर्थ्य रखते थे, कामरूपधारी-इच्छानुसार (यथेच्छ) रूप धारण करने वाले थे। वे भिन्न-भिन्न रंग के उत्तम, चित्र-विचित्र-तरह तरह के चमकीले-भडकीले वस्त्र पहने हुए थे । अनेक देशों की वेशभूषा के अनुरूप उन्होंने भिन्न भिन्न प्रकार की पोशाकें धारण कर रखी थीं । वे प्रमोदपूर्ण कामकलह, क्रीडा तथा तज्जनित कोलाहल में प्रीति मानते थे-आनन्द लेते थे। वे बहुत हँसने वाले तथा बहुत बोलने वाले थे । वे अनेक मणियों एवं रनों से विविध रूप में निर्मित चित्र-विचित्र चिह्न धारण किये हुए थे । वे सुरूप-सुन्दर रूप युक्त तथा परम ऋद्धि सम्पन्न थे । पूर्व समागत देवों की तरह यथाविधि वन्दन नमन कर श्रमण भगवान् महावीर की पर्युपासना करने लगे ।
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