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आयुधगृह- शस्त्रागार
देव-शय्या के उत्तर-पूर्व दिग्भाग (ईशान कोण) में आठ योजन लम्बीचौड़ी चार योजन मोटी सर्वमणिमय यावत् प्रतिरूप एक बड़ी मणिपीठिका बनी
है ।
इसके के ऊपर साठ योजन ऊँचा, एक योजन चौड़ा, वज्ररत्नमय सुंदर गोल आकार वाला यावत् प्रतिरूप एक क्षुल्लक - छोटा माहेन्द्रध्वज लगा हुआ हैफहरा रहा है । जो स्वस्तिक आदि आठ मंगलो, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से उपशोभित है ।
इसके पश्चिम दिशा में सूर्याभदेव का 'चोप्पाल' नामक प्रहरणकोश (आयुधगृह-शस्त्रागार) बना है । यह आयुधगृह सर्वात्मना रजतमय, निर्मल यावत् प्रतिरूप है ।
प्रहरणकोश में सूर्याभ देव के परिघरन (मूसल, लोहे का मुद्गर जैसा शस्त्रविशेष) तलवार, गदा, धनुष, आदि बहुत से श्रेष्ठ प्रहरण (अस्त्र-शस्त्र ) सुरक्षित रखे हैं । वे सभी शस्त्र अत्यन्त उज्जवल, चमकीले, तीक्ष्ण धार वाले और मन को प्रसन्न करने वाले आदि हैं ।
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सुधर्मा सभा का उपरी भाग आठ-आठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से सुशोभित हो रहा है । १९५
- सिद्धायतन
सुधर्मा सभा के उत्तर- - पूर्व दिग्भाग (ईशान कोण) में एक विशाल सिद्धायतन है । वह सौ योजन लम्बा, पचास योजन चौड़ा और बहत्तर योजन ऊँचा है । और इस सिद्धायतन का गोमानसिकाओं पर्यन्त एवं भूमिभाग तथा चंदेवा का वर्णन सुधर्मा सभा के समान जानना ।
टिप्पण :
१.
२.
३.
४.
'जल्लेसे मरइ तल्लेसे उवज्जइ' जीवाजीवाभिगम सूत्र भा. १ पृ. ५४.
अष्टाध्यायी - दिवादि गण.
अभिधान राजेन्द्र कोष, पृ. २६०७
'सम्मूर्छनगर्भोपपाता जन्म' तत्त्वार्थसूत्र अ० २ गा० ३२
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