________________
२०६
नारको के नाम
जघन्य
उत्कृष्ट १. रत्नप्रभा नारक दस हजार वर्ष एक सागरोपम २. शर्कराप्रभा नारक एक सागरोपम तीन सागरोपम ३. वालुकाप्रभा नारक तीन सागरोपम सात सागरोपम ४. पंकप्रभा नारक सात सागरोपम दस सागरोपम ५. धूमप्रभा नारक दस सागरोपम सत्रह सागरोपम ६. तमःप्रभा नारक सत्रह सागरोपम बावीस सागरोपम
७. अधःसप्तम नारक बावीस सागरोपम तैंतीस सागरोपम २१. अवगाहना- नैरयिकों की अवगाहना दो प्रकार की है
१) भवधारणीय और २) उत्तरवैक्रियिकी ।
जो जन्म से होती है वह भवधारणीय अवगाहना है । और जो भवान्तर के वैरी नारक के घात प्रतिघात के लिए बाद में विचित्र रूप में बनाई जाती है, वह उत्तरवैक्रियकी अवगाहना है ।
जीवाभिगम सूत्र में सात नारकियों की अवगाहना का निम्न प्रकार से उल्लेख किया गया है
पृथ्वी का नाम भवधारणीय अवगाहना उत्तरवैक्रियिकी अवगाहना १. रत्नप्रभा नैरयिक ७१॥ धनुष ६ अंगुल १५११ धनुष १२ अंगुल २. शर्कराप्रभा " १५|| धनुष १२ अंगुल ३१ धनुष ३. बालुकाप्रभा " ३१॥ धनुष
६२॥ धनुष ४. पंकप्रभा " ६२॥ धनुष १२५ धनुष ५. धूमप्रभा " १२५ धनुष
२५० धनुष ६. तमःप्रभा " २५० धनुष ५०० धनुष ७. अधःसप्तम पृथ्वी " ५०० धनुष १००० धनुष
समुच्चय नारकों की भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवा भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ५०० धनुष्य होता है । और उत्तरवैक्रियिकी अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवा भाग और उत्कृष्ट १००० धनुष्य होती हैं ।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org