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एक साथ सोलह हजार देव विविध प्रकार के रूप धारण करके विमान को पालकी की तरह चलाते हैं । इसका विशेष विशेषणों के साथ वर्णन जीवाजीवाभिगम सूत्र में किया गया हैं ।११०
इसी प्रकार शेष सभी ज्योतिष्क देवों के विमानों का वहन भी देव गण करते हैं । सूर्य विमान को १६००० देव वहन करते हैं ।
ग्रह विमान के ८००० देव होते हैं । एक-एक दिशा में दो हजार देव होते हैं ।
नक्षत्र विमान के ४००० देव होते हैं। चारों दिशा में एक हजार देव होते
तारा विमान के २००० देव होते हैं। चारों दिशा में ५०० देव वहन करते
ता
जिस समय ज्योतिष्केन्द्र विमान में आरूढ़ होते हैं, तब ये सब देव एक साथ विमान का वहन करते हैं । इस प्रकार पाँचो ही ज्योतिष्क इंद्र देवों के विमान, देवों द्वारा ही गतिमान किये जाते हैं । १२. ज्योतिष्क देवों की गति, ऋद्धि गति :
चन्द्र से सूर्य की तेजगति होती है। सूर्य से ग्रह शीघ्रगति वाले हैं । ग्रह से नक्षत्र की शीघ्रगति है । नक्षत्रों से तारे शीध्रगति करते हैं । सबसे मन्दगति चन्द्रों की है और सबसे तीव्रगति तारों की है । ऋद्धि :
ऋद्धि अर्थात् वैभव ।
तारों से नक्षत्र महद्धिक हैं, नक्षत्र से ग्रह महद्धिक है- ग्रहों से सूर्य महर्द्धिक हैं, सूर्यों से चन्द्रमा महर्द्धिक हैं । इसप्रकार अल्पऋद्धि वाले तारे हैं और सबसे महर्द्धिक चन्द्र हैं ।१९१ १३. ज्योतिष्क देवों की लोक में संचार विधि
सभी ज्योतिष्क देव भ्रमण करते हैं । एक धूरी के चारों ओर प्रदक्षिणा रूप से ये गति करते हैं । यह धूरी है-मेरू पर्वत । यहाँ पर प्रत्येक ज्योतिष्क
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