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देव की संचार विधि का उल्लेख दूरी को लक्ष्य करके किया गया है कि मेरू पर्वत से कौन सा देव, कितनी दूरी पर गति कर रहा है ?
____ ज्योतिष्क देवों की संचरण विधि का उल्लेख जीवाजीवाभिगम सूत्र में निम्न प्रकार से किया गया है
जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव ग्यारह सौ इक्कीस (११२१) योजन दूरी पर प्रदक्षिणा करते हैं । इसी तरह दक्षिण चरमान्त, पश्चिम चरमान्त और उत्तर चरमान्त से ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूरी पर प्रदक्षिणा करते हैं।
लोकान्त से ग्यारह सौ ग्यारह (११११) योजन पर एक ज्योतिष्कचक्र है।
इस रत्नाप्रभापृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से ७९० योजन दूरी पर सबसे नीचला तारा गति करता है । आठ सौ (८००) योजन दूरी पर सूर्यविमान संचरण करता है । आठ सौ अस्सी (८८०) योजन पर चंद्रविमान संचार करता है । नौ सौ (९००) योजन दूरी पर सबसे ऊपरवर्ती तारा गति करता है ।
सबसे निचले तारे से दस योजन दूरी पर सूर्यविमान गति करता है, नब्बे योजन दूरी पर चन्द्रविमान संचरता है । एक सौ दस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा गति करता है ।
सूर्यविमान से अस्सी योजन की दूरी पर चंद्रविमान है और एक सौ योजन ऊपर सर्वोपरि तारा भ्रमण करता है ।
चंद्रविमान से बीस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा गति करता है। इस प्रकार सब मिलाकर एक सौ दस योजन के बाहल्य (मोटाई) में तिर्यदिशा में असंख्यात योजन पर्यन्त ज्योतिष्कचक्र कहा गया है ।
जम्बूद्वीप में अभिजित नक्षत्र सबसे भीतर रहकर मण्डलगति से परिभ्रमण करता है । मूल नक्षत्र-सब नक्षत्रों से बाहर रहकर मण्डलगति से परिभ्रमण करता है । स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर भ्रमण करता है और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है ।१२ इस प्रकार सभी ज्योतिष्कदेव जंबूद्वीप में भ्रमण करते हैं । १४. स्थिर ज्योतिष्क :
मनुष्यलोक से बाहर के सूर्य आदि ज्योतिष्क विमान स्थिर है, क्योंकि उनके विमान स्वभावतः एक स्थान पर स्थिर रहते हैं, यत्र-तत्र भ्रमण नहीं करते।
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